तेस्सितोरी ने राजस्थानी को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई: डॉ. तंवर
जोधपुर, 13 दिसम्बर (हि.स.)। आजादी से पूर्व राजपूताना में प्राचीन डिंगल-पिंगल, चारण-चारणेत्तर, जैन-जैनेत्तर, लोक-संत साहित्य एवं ऐतिहासिक-पुरातात्विक स्रोत की खोज कर डॉ. तेस्सीतोरी ने राजस्थानी भाषा साहित्य को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई। यह विचार प्रतिष्ठित विद्वान डॉ. महेन्द्रसिंह तंवर ने जेएनवी विश्वविद्यालय के राजस्थानी शोध परिषद एवं राजस्थानी विभाग द्वारा नया परिसर स्थित राजस्थानी सभागार में आयोजित डॉ.एलपी तेस्सितोरी के 138वें जन्म जयंती समारोह पर आयोजित राजस्थानी व्याख्यान में व्यक्त किये।
इस अवसर पर उन्होंने तेस्सितोरी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को विस्तार से उजागर करते हुए कहा कि उनकी आलोचनात्मक दीठ अद्भुत थी। समारोह के मुख्य अतिथि कला शिक्षा एवं समाज विज्ञान संकाय के अधिष्ठाता प्रोफेसर (डॉ) औतारलाल मीणा ने कहा कि भारतीय भाषाओं के सर्वेक्षण एवं शोध में अनेक विदेशी विद्वानो का महत्वपूर्ण योगदान रहा है जिसमें राजस्थानी भाषा-साहित्य में डॉ. तेस्सितोरी के योगदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता।
उन्होंने कहा कि मातृभाषा हमारी पहचान है इसलिए अपने दैनिक जीवन में इसका ज्यादा से ज्यादा उपयोग करना चाहिए। समारोह अध्यक्ष एवं राजस्थानी विभागाध्यक्ष डॉ.गजेसिंह राजपुरोहित ने डॉ. एल.पी.तेस्सितोरी को धुन का धनी बताते हुए कहा कि उन्होंने राजस्थानी भाषा-साहित्य के शोध-सर्वेक्षण एवं ऐतिहासिक पुरातात्विक स्रोत की खोज कर जो कीर्तिमान स्थापित किया है वो वाकई में उल्लेखनीय है। शोधार्थी तरनीजा मोहन राठौड़ ने डॉ. तेस्सीतोरी के भाषा विज्ञान विषय पर प्रकाश डालते हुए उनके द्वारा रचित ऐतिहासिक राजस्थानी व्याकरण को राजस्थानी का आधार स्तम्भ बताया।
हिन्दुस्थान समाचार / सतीश