संवाद और डिस्कशन से ही विवादों को सुलझाया जा सकता है- प्रसून जोशी

 


अजमेर, 09 फरवरी(हि.स.)। फिल्म राइटर प्रसून जोशी ने कहा कि आपसी संवाद बहुत जरूरी है। संवाद और डिस्कशन से ही विवादों को सुलझाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि आज भी लोग किताबों के नजदीक है, बस तरीका बदला है। बच्चे आज रील बनाकर सोशल मीडिया पर डालते है। मैं चाहता हूं, वह कविता के साथ कवियों के नाम भी साथ में पोस्ट करें। ये बात जोशी ने अजमेर में कहीं।

वे और एमपी के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान शुक्रवार को मेयो कॉलेज में द फेस्टिवल ऑफ वर्ड्स कार्यक्रम में शामिल होने आए। इससे पहले दोनों ने मीडिया से बातचीत की। शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि वह बच्चों से बहुत प्यार करते हैं। वह मानते हैं कि प्रेम ही भगवान का रूप है। मध्य प्रदेश में बच्चों से प्यार करते हैं तो बच्चे उन्हें मामा कहते हैं। चौहान ने कहा कि हर एक बच्चा अनंत शक्तियों का भंडार है। अगर वह अपने आप को और इन शक्तियों को पहचान ले तो हर एक अद्भुत और अभूतपूर्व काम कर सकता है। बड़े से बड़ा काम कर सकता है। लोकसभा चुनाव पर उन्होंने कहा कि पूरा भारत अपना देश है। नाम रखने से इंडिया नहीं हो जाता। इस समय पूरे देश में बीजेपी की लहर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जन-जन के मन में बसे हैं। अब तो सवाल इतने हैं कि 400 पार जाना हैं, अब तो खड़गे साहब जैसे लोग भी कहने लगे हैं। परिणाम स्पष्ट है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पीछे देश खड़ा है।

भारतीय फिल्मों के लेखक प्रसून जोशी ने कहा कि संवाद हमारे देश की रीड है। संवाद से ही विवाद सुलझते है। मुझे लगता है- हमारी आने वाली पीढ़ी को संस्कार और विचारों को कैसे डिस्कशन से समझा सकते हैं। जोशी ने बच्चों के पढ़ाई से दूरी के सवाल पर कहा- उन्हें नहीं लगता है कि पढ़ने से दूरी है। हां, पहले जैसे किताब से पढ़ते थे। उस तरह से नहीं पढ़ रहे लोग। शायद उसकी रील बना देते हैं। बच्चे कविताएं जरुर डालते हैं। जोशी ने कहा कि मैं चाहता हूं बच्चे कविताएं डालें तो कवियों का नाम भी डालें। जो पढ़ने की परंपरा है, उसे जीवित रखना चाहिए। पढ़ने का अपना एक ही मजा है। इसका एक अपना यूज है। जोशी ने बच्चों के सुसाइड करने के सवाल पर कहा- बच्चों पर महत्वाकांक्षाओं का बोझ बहुत ज्यादा है। सोशल मीडिया के दौर में हर व्यक्ति को लगता है कि सफलता की परिभाषा ज्यादा पैसा कमा लेना है। मेरा ज्यादा नाम हो जाएगा। इन मापदंडों को मुख्य मापदंड बना दिया है। ज्यादा पैसा नहीं कमा पाए तो आप सक्सेसफुल नहीं हो। सक्सेसफुल होने की डेफिनेशन हमने गलत की है। जबकि ऐसा हमारे समाज में नहीं था। एक अच्छा बेटा, दोस्त, अपने रिश्ते को निभाना भी अच्छी सफलता का परिचायक था। वह सभी हमने खत्म कर दिया। हमें देखना होगा- जो व्यक्ति अपने दायित्व को अच्छी तरह निभा रहा है। वह सक्सेसफुल है और उसका भी सम्मान किया जाना चाहिए। फिल्म राइटर ने कहा कि- आज बच्चों को लगता है कि बड़े लोग क्या जानते हैं। बच्चों को अपने बड़ों को सुनना चाहिए। उन लोगों को सुने जो उनके हितैषी है। बच्चों में सुसाइड केस बढ़ने के मामले में जोशी ने कहा कि पहले बच्चों को परिवार में प्यार मिलता था। जो कहता था- तू अच्छे नंबर ला या बुरे नंबर ला, है तो तू मेरा लाल। वह प्रेम ही बच्चों को डिप्रेशन से बाहर निकलेगा।

हिन्दुस्थान समाचार/संतोष/ईश्वर