रुई की रजाइयों की 40 प्रतिशत तक घटी बिक्री, बढ़ने लगा कंबल का क्रेज

 


चित्तौड़गढ़, 5 दिसंबर (हि.स.)। प्रदेश में सर्दी का सितम अब धीरे धीरे बढ़ने लगा है। सर्दी के मौसम में खान पान और पहनावे को लेकर विशेष ध्यान रखा जाता है। समय के साथ पहनने के वस्त्र भी बदले हैं तो रात को सोते समय ओढ़ने के लिए भी रजाइयों की जगह कंबल ने ले ली है। कुछ वर्षों में रजाइयों की बिक्री ठप्प सी हो गई है और हर घर कंबल की मांग होने लगी है।

एक समय था जब सर्दी शुरू होने से पहले ही परिवार के लोग रजाइयों को निकाल लेते थे। रजाइयों को धूप में देना, रूई खराब होने पर सुधरवा आदि कार्यों में लग जाते थे। चार माह तक रजाईयां बनाने वालों को फुर्सत तक नहीं मिलती थी। लेकिन अब स्थिति अलग हो गई है। रजाई बनाने वालों के यहां लोग नहीं पहुंच रहे और रेडिमेंट कंबल खरीद रहे हैं। शहर हो या गांव, अब अधिकांश घरों में ब्लैकेट और रेडिमेड कंबल ने रजाइयों की जगह ले ली है।

जिले के शहर एवं गांवों की बात की जाए तो सर्दी से पहले जगह पर रुई की धुनाई की दुकाने और रजाई भरने वाले कारीगर आसानी से मिल जाते थे। शहर के अलावा बड़े कस्बों तक में दुकानें होती थी। लेकिन अब इन रजाइयों की मांग कम होने से ग्राहकी कम दिख रही है।

कभी-कभार ही आते हैं ग्राहक

ऊनी वस्त्रों के व्यवसाय से जुड़े निरंजन सिंह ने बताया कि कम वजन, आसानी से धुलने और अच्छी प्रिंट के कारण रेडिमेड कंबलों की मांग लगातार बढ़ रही है। यही वजह है कि रुई की रजाइयों की जगह अब कंबल ने ले ली है। सर्दी की दस्तक के साथ ही बाजारों में आकर्षक ब्लैंकेट और कंबल की भरमार नजर आने लगी है। अधिकतर घरों में कंबल व ब्लैंकेट की मांग है।

रजाई एवं हैंडलूम का काम करने वाले राजकुमार कटारिया ने बताया कि करीब 30 साल पहले रजाई का काम शुरू किया तो अच्छी ग्राहकी होती थी। हर घर से काफी ऑर्डर आते थे। अब स्थिति यह है कि इसमें करीब 40% तक की कमी आई है। पहले ऊन की रजाईयां बनती थी। अब ऊनी कंबल आने लगे हैं, जो वजन में हल्के होते हैं। आसानी से धूल जाती है और कहीं भी समेट कर रख सकते हैं। रूई वाली रजाइयों में गुठले पड़ जाते हैं। जगह भी ज्यादा चाहिए इन्हें रखने के लिए। कटारिया ने बताया कि अब हम पुरानी साड़ियां होती है, जो लोग लाकर देते हैं। इसमें हम फाइबर सीट डाल का बना रहे हैं। इसमें वजन भी कम होता है। आसानी से धो सकते हैं। साथ ही यह गर्म भी अच्छी रहती है।

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हिन्दुस्थान समाचार / अखिल