पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भीलवाड़ा पुरा-प्राचीन वैभव महोत्सव 16 अक्टूबर से
भीलवाड़ा, 14 अक्टूबर (हि.स.)।
जलधारा विकास संस्थान द्वारा 16 से 19 अक्टूबर तक भीलवाड़ा जिले के ऐतिहासिक और पुरातात्विक स्थलों के संरक्षण और पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भीलवाड़ा पुरा-प्राचीन वैभव महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। इस महोत्सव का आयोजन माणिक्य लाल वर्मा राजकीय महाविद्यालय, शिक्षा विभाग भीलवाड़ा और नाकोडा इन्फ्रास्टील प्रा. लिमिटेड की सहभागिता में किया जाएगा। जलधारा विकास संस्थान के अध्यक्ष महेश चंद्र नवहाल ने बताया कि इस महोत्सव का उद्देश्य जिले के वैभवशाली पुरा-प्राचीन भग्नावशेषों के संरक्षण और जन जागरूकता फैलाना है, साथ ही पर्यटन को भी बढ़ावा देना है।
महोत्सव का आयोजन चार दिन चलेगा, जिसमें विभिन्न ऐतिहासिक स्थलों का अवलोकन किया जाएगा और वहां संरक्षण के महत्व पर आधारित कार्यशालाएं आयोजित होंगी।
16 अक्टूबर 2024 को महोत्सव का प्रथम दिवस गंगापुर तहसील के नान्दशा (खालसा) ग्राम में आयोजित किया जाएगा, जहां 282 ईस्वी का यूप (स्तंभ) स्थापित है। सुबह 9 बजे यूप दर्शन का कार्यक्रम होगा और 11 बजे स्थानीय राजकीय विद्यालय में संरक्षण एवं गौरव गान कार्यशाला आयोजित की जाएगी।
17 अक्टूबर 2024 को दूसरे दिन का आयोजन मंगरोप के निकट कुम्हारिया में किया जाएगा। यह स्थल लगभग 3000 वर्ष पुरानी सभ्यता के भग्नावशेषों का केंद्र है। यहां भी साईट विजिट सुबह 9 बजे होगी और संरक्षण एवं गौरव गान कार्यशाला स्थानीय राजकीय विद्यालय में 11 बजे आयोजित की जाएगी। इस कार्यक्रम में डीम्ड यूनिवर्सिटी उदयपुर के निदेशक और प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता डॉ. जीवन सिंह खड़कवाल मुख्य अतिथि होंगे। बूंदी के प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता ओम प्रकाश कुकी अपने पुरातत्व खोज अनुभवों को साझा करेंगे।
18 अक्टूबर 2024 को तीसरे दिन बागोर सभ्यता का अवलोकन किया जाएगा। बागोर को भारत की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक माना जाता है। साईट विजिट के बाद संरक्षण एवं गौरव गान कार्यशाला स्थानीय विद्यालय में होगी।
19 अक्टूबर 2024 को महोत्सव के अंतिम दिन बिजोलिया के प्रसिद्ध मंदाकिनी मंदिर और पुरा चिन्हों का दर्शन किया जाएगा। इसके बाद स्थानीय विद्यालय में गौरव गान और संरक्षण कार्यशाला आयोजित की जाएगी।
जलधारा विकास संस्थान के अध्यक्ष महेश चंद्र नवहाल ने बताया कि महोत्सव के दौरान डीम्ड यूनिवर्सिटी, उदयपुर के शोध विद्यार्थी भी इसमें भाग लेंगे। इस महोत्सव का मुख्य उद्देश्य भीलवाड़ा के पुरातात्विक धरोहरों के संरक्षण और उनकी सांस्कृतिक महत्ता को उजागर करना है। महोत्सव में भाग लेने वाले पुरातत्व विशेषज्ञ जिले के ऐतिहासिक धरोहरों के महत्व और उनके संरक्षण के उपायों पर चर्चा करेंगे।
कार्यक्रम का उद्देश्य और महत्व
इस महोत्सव के माध्यम से जलधारा विकास संस्थान जिले के पुरातात्विक स्थलों की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित कर उन्हें संरक्षित करने के प्रयास कर रहा है। इसके साथ ही जिले में पर्यटन को बढ़ावा देने का भी प्रयास किया जा रहा है। महेश चंद्र नवहाल ने बताया कि इस प्रकार के आयोजन जिले की सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने के लिए आवश्यक हैं, क्योंकि इससे न केवल इतिहास के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ेगी बल्कि भीलवाड़ा को पर्यटन के नक्शे पर एक प्रमुख स्थान दिलाने में भी मदद मिलेगी।
कार्यक्रम की रूपरेखा
महोत्सव के प्रत्येक दिन सुबह 9 बजे साईट विजिट और 11 बजे संरक्षण एवं गौरव गान कार्यशालाओं का आयोजन होगा। सभी ऐतिहासिक स्थलों पर पुरातात्विक विशेषज्ञों द्वारा इन स्थलों की विशेषताओं, उनके इतिहास और उनके संरक्षण की आवश्यकताओं पर प्रकाश डाला जाएगा।
महोत्सव के उद्देश्य---
जलधारा विकास संस्थान के अध्यक्ष महेश चंद्र नवहाल ने बताया कि इस आयोजन का उद्देश्य पुरातात्विक स्थलों की महत्ता को समझाना, संरक्षण के लिए जागरूकता फैलाना, और भीलवाड़ा को एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करना है। महोत्सव के दौरान विशेषज्ञों द्वारा दी गई जानकारी और उनके अनुभवों से न केवल स्थानीय जनता बल्कि विद्यार्थी भी इन धरोहरों के प्रति संवेदनशील होंगे और उनके संरक्षण के लिए योगदान देंगे। भीलवाड़ा पुरा-प्राचीन वैभव महोत्सव एक महत्वपूर्ण प्रयास है, जो जिले के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों को सहेजने और उन्हें भावी पीढ़ियों तक पहुंचाने में सहायक होगा। इस महोत्सव में भाग लेकर लोग इन धरोहरों की महत्ता को समझ सकेंगे और उन्हें संरक्षित करने के प्रति जागरूक होंगे।
महोत्सव का शेड्यूल--
नान्दशा (खालसा)- 16 अक्टूबर 2024
कुम्हारिया- 17 अक्टूबर 2024
बागोर- 18 अक्टूबर 2024
बिजोलिया- 19 अक्टूबर 2024
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हिन्दुस्थान समाचार / मूलचंद