राज विस चुनाव : भरतपुर सीमावर्ती जिला, आजादी के बाद से कांग्रेस के मुकाबले में दूसरे दलों की भी रही मजबूत पकड़

 




भरतपुर, 30 अक्टूबर (हि.स.)। आजादी के बाद से ही भरतपुर की राजनीति में कांग्रेस के मुकाबले अन्य दलों ने भी अपनी मजबूत पकड़ बनाई। ये बात अलग है कि राजनीतिक दलों के नाम ही बदलते रहे। 2023 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर से दूसरे दलों की मौजूदगी कांग्रेस और भाजपा के लिए बड़ी चुनौती साबित हो रही है।

भरतपुर की राजनीति के गहन जानकार एवं समाजवादी नेता 98 वर्षीय पं. रामकिशन बताते हैं कि वर्ष 1947 से पहले प्रजा परिषद के बैनर तले चुनाव होते थे। आजादी के बाद कांग्रेस सबसे बड़ा एवं अहम राजनीतिक दल था। लेकिन सोशलिस्ट पार्टी का भरतपुर में एक मजबूत राजनीतिक आधार रहा। वर्ष 1952 के चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी के चार उम्मीदवार विधानसभा का चुनाव जीते। 1957 के चुनाव में भी सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी चुनाव जीतने में सफल रहे। 1962 के चुनाव में भी पं. रामकिशन, मुकुटबिहारी गोयल और हरिशंकर हुंडावाल ने चुनाव जीतकर एक बार फिर से सोशलिस्ट पार्टी का झंडा बुलंद किया। 1967 में भी सोशलिस्ट पार्टी के चार विधायक बने थे। 1972 तक सोशलिस्ट पार्टी का भरतपुर में मजबूत जनआधार रहा। मगर इसके बाद पार्टी के नेताओं द्वारा कांग्रेस में शामिल होने से सोशलिस्ट पार्टी कमजोर पड़ गई।

1977 में जनता पार्टी के गठन के साथ जनता को सोशलिस्ट पार्टी का एक नया विकल्प मिल गया था। इसके चलते केवल कुम्हेर की सीट को छोड़ अन्य सभी सीटों पर जनता पार्टी के उम्मीदवार चुनाव जीतने में सफल रहे। वर्ष 1988 में जनता दल बना तो इसका सीधा नुकसान जनता पार्टी को ही हुआ। इसके बाद राजनीति में एक नई पीढ़ी का आगमन होना शुरू हुआ जो अन्य दलाें के बैनरों पर चुनाव लड़े और जीतने में भी सफल हुए। इन पार्टियों में सबसे पहला नाम इनेलो का है। भरतपुर के सभापति रहे विजय बंसल ने इनेलो के बैनर पर चुनाव लड़ा। हरियाणा से दिग्गज नताओं की भरतपुर में एंट्री हो चुकी थी। इस पृष्ठभूमि पर काम करते हुए कांग्रेस ने 2018 के चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन किया। गठबंधन के उम्मीदवार डॉ. सुभाष गर्ग थे जो चुनाव जीतने में सफल रहे। आम आदमी पार्टी ने भी 2018 में भरतपुर से चुनाव तो लड़ा लेकिन सफलता नहीं मिली। 2023 के चुनाव में भी पार्टी अपने प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतारकर राजनीतिक जमीन तलाशने में जुटी है।

बदलते राजनीतिक माहौल को देखते हुए बहुजन समाज पार्टी ने भी भरतपुर में अपनी राजनीतिक जमीन तलाशनी शुरू कर दी। बसपा का अच्छा खासा वोट बैंक तैयार था। इसके दम पर पार्टी ने भाजपा और कांग्रेस को कड़ी टक्कर दी। 2018 के चुनाव में राजस्थान से बसपा के पांच प्रत्याशी चुनाव जीते, जिनमें से दो भरतपुर जिले से थे। नगर से वाजिब अली और नदबई से जोगेंद्र सिंह अवाना ने जीत हांसिल की। इस बार भी बसपा ने जिले की सात सीटाें में से पांच सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं।

हिन्दुस्थान समाचार/ अनुराधा़/ईश्वर