आर्यसमाज ने हर दशक में दिए महत्वपूर्ण बलिदान: डॉ. मोक्षराज

 


अजमेर, 28 दिसंबर (हि.स.)। आर्य समाज द्वारा केसरगंज स्थित सभागार में आयोजित साप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम में पूर्व राजनयिक एवं भारतीय संस्कृति शिक्षक डॉ. मोक्षराज ने कहा कि आर्य समाज ने हर दशक में देश और समाज के लिए महत्वपूर्ण बलिदान दिए हैं। उन्होंने कहा कि आज हर क्षेत्र के नेताओं को आर्य समाज और उसके द्वारा तैयार किए गए देशभक्त योद्धाओं के संघर्षपूर्ण इतिहास से प्रेरणा लेकर अपने आचरण में सुधार करना चाहिए, तभी विकसित भारत के सपने को साकार किया जा सकता है।

मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. मोक्षराज ने कहा कि आर्य समाज की स्थापना के बाद से स्वतंत्रता आंदोलन तक और उसके बाद भी हिंदी आंदोलन, गौरक्षा आंदोलन और हैदराबाद मुक्ति संग्राम सहित अनेक आंदोलनों में हजारों आर्यसमाजियों ने अपने प्राणों की आहुति दी। उन्होंने बताया कि शुद्धि आंदोलन और अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह आर्य समाज के प्रमुख संघर्ष रहे हैं।

उन्होंने इतिहास के प्रमुख बलिदानों का उल्लेख करते हुए कहा कि 1883 में अजमेर में महर्षि दयानंद सरस्वती का बलिदान हुआ, 1897 में पंडित लेखराम की हत्या की गई। इसके बाद 1908-09 में खुदीराम बोस और मदनलाल ढींगरा को फांसी दी गई। 1913 में गोविंद गुरु के नेतृत्व में मानगढ़ आंदोलन में 1500 से अधिक भील और वनवासी शहीद हुए। उन्होंने 1926 में स्वामी श्रद्धानंद की हत्या, 1927 में पं. रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और ठाकुर रोशन सिंह की फांसी, 1931 में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव तथा 1940 में ऊधम सिंह की शहादत का भी उल्लेख किया।

डॉ. मोक्षराज ने कहा कि 1947 के विभाजन के समय लाहौर, पेशावर, मुल्तान और कराची में सैकड़ों आर्यसमाजियों ने बलिदान दिए और यह क्रम 1960 के दशक तक विभिन्न सामाजिक आंदोलनों के माध्यम से चलता रहा।

कार्यक्रम की शुरुआत वेद मंत्रों के साथ यज्ञ और आहुतियों से हुई। लालचंद आर्य ने ईश प्रार्थना की। आर्य समाज के प्रधान नवीन मिश्र ने ऋग्वेदादि भाष्यभूमिका तथा डॉ. राधेश्याम शास्त्री ने सत्यार्थ प्रकाश का पाठ किया। आशीष कटारिया ने ऋषि महिमा गीत प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. आराधना आर्य ने किया।

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हिन्दुस्थान समाचार / रोहित