झाबुआ: श्रद्धा पूर्वक हुआ दशा माता व्रत विधान, रात तीन बजे से शुरू हुई अश्वत्थ पूजा

 
झाबुआ: श्रद्धा पूर्वक हुआ दशा माता व्रत विधान, रात तीन बजे से शुरू हुई अश्वत्थ पूजा


झाबुआ: श्रद्धा पूर्वक हुआ दशा माता व्रत विधान, रात तीन बजे से शुरू हुई अश्वत्थ पूजा


झाबुआ: मध्य प्रदेश, 24 मार्च (हि.स.)। चैत्र कृष्ण दशमी तिथि पर हिंदू धर्मावलंबी महिलाओं द्वारा सनातन संस्कृति का मुख्य धार्मिक दशा माता व्रत पर्व सोमवार को संपूर्ण जिले में हर्षोल्लास पूर्वक एवं पूरी श्रद्धा के साथ संपन्न किया गया। इस अवसर पर विधि पूर्वक अश्वत्थ वृक्ष की पूजा सम्पन्न की गई और अश्वत्थ की परिक्रमा कर संपूर्ण परिवार की खुशहाली की मंगल प्रार्थना की गई। जिले के विभिन्न हिस्सों में दशा माता व्रत पूजा का सिलसिला बीती रात तीन बजे से ही आरंभ हो गया था, जो कि आज सोमवार शाम तक अनवरत रूप से जारी रहा। इस पर्व पर जनजातीय अंचलों में भी महिलाओं द्वारा जनजातीय परंपरानुसार बड़े सबेरे से ही पीपल वृक्ष की पूजा शुरू कर दी गई।

दशा माता व्रत विधान अनुसार जिला मुख्यालय पर तालाब किनारे स्थित जैन नसिया के समीप प्राचीन अश्वत्थ वृक्ष सहित सिद्धेश्वर कालोनी में श्री सिद्धेश्वरी देवी मंदिर परिसर एवं गोपाल कालोनी स्थित पुराने पीपल वृक्ष की पूजा अर्चना की गई, जबकि मेघनगर में रामदेव मंदिर, शीतला माता मंदिर, टीचर्स कालोनी, थांदला में श्रीगणेश मंदिर, श्री तेजाजी मंदिर एवं श्री पट्टाभिराम मंदिर के समक्ष स्थित पीपल वृक्ष की पूजा अर्चना करते हुए परिक्रमा कर दशा माता व्रत विधान किया गया। जिले के सुदूर अंचलों में भी जनजातीय समुदाय की महिलाओं द्वारा जनजातीय परंपरानुसार पीपल के वृक्ष की पूजा कर व्रत विधान किया जा रहा है।

हमारे धर्म शास्त्रों में व्रत रखते हुए पीपल के वृक्ष की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि चैत्र कृष्ण दशमी तिथि के दिन पीपल के वृक्ष में भगवान् श्री हरि विष्णु देवी लक्ष्मी सहित निवास करते हैं। इस दिन पीपल को जल और कच्चे दूध से सींचा जाता है। धर्म शास्त्रों में उल्लेखित कथन अनुसार जिले में विभिन्न स्थानों पर महिलाओं ने सर्व प्रथम पीपल के वृक्ष की विधि विधान पूर्वक विभिन्न सामग्रियों से पूजा अर्चना की, और उसके चारों तरफ कच्चा सूत बांधा। पूजा विधान में भांति भांति के नैवेद्य निवेदित कर अंत में पीपल के वृक्ष की परिक्रमा की। जिले में विभिन्न स्थानों पर विद्वान ब्राह्मणों द्वारा दशा माता के प्रतीक स्वरूप पीपल वृक्ष की पूजा संपन्न कराई गई, और दशा माता की कथा के रूप में महाराज नल और देवी दमयंती रानी की कहानी सुनाई गई।

उल्लेखनीय है कि इस व्रत में माताजी का धागा जिसमें दस गांठे लगाई जाती हैं, सुहागिन महिलाएं अपने गले में धारण करती हैं। कई स्थानों पर महिलाओं द्वारा सिर्फ दशा माता के व्रत के दिन दशा माता का धागा पूरे दिन धारण किया जाता है, जबकि कुछ महिलाएं इसे पूरे वर्ष भर धारण किए रहती है। किंतु यदि साल भर पहनना संभव न हो तो किसी भी वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष में अच्छा दिन देखकर पीपल के पेड़ पर या मां पार्वती के चरणों में इस डोरे को समर्पित कर दिया जाता है। जिले में इस व्रत को अपने परिवार की परंपरा के अनुसार किया जाता रहा है। दशा माता के इस व्रत में एक समय का भोजन किया जाता है, किंतु कुछ महिलाएं इस दिन पूरा उपवास भी रखती है। सुहागिन महिलाएं इस व्रत को आजीवन रखती है, और इस व्रत का उद्यापन नहीं किया जाता है। आज के दिन अश्वत्थ वृक्ष की छाल को कनिष्ठका अंगुली से निकालकर तथा लाल कपड़े में बांधकर तिजोरी में रखा जाता है और पूजनोपरांत घर आकर मुख्य दरवाजे पर हल्दी और कुमकुम के मंगल चिन्ह भी बनाए जाते हैं।

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हिन्दुस्थान समाचार / उमेश चंद्र शर्मा