योग वैयक्तिक चेतना के साथ परात्पर चेतना के मिलन का अद्भुत साधन: कुलपति प्रो. त्रिपाठी

 


इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर

अनूपपुर, 21 जून (हि.स.)। योग, योगक्षेम की प्राप्ति के साथ ही साथ निर्वाण प्राप्ति का माध्यम भी है। इसके नियमित अभ्यास से मनुष्य शारीरिक व मानसिक आरोग्य प्राप्त करने के साथ ही जीवन के परम लक्ष्य- परम परमतत्व की प्राप्ति भी कर सकता है। योग वैयक्तिक चेतना के साथ परात्पर चेतना के मिलन का अद्भुत साधन है। आपने नियमित योगाभ्यास के साथ-साथ प्रणव साधना (ॐकार जप) पर जोर दिया।

यह बात शुक्रवार को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक में योग संकाय द्वारा विश्वविद्यालय के खेल परिसर में आयोजित दशम अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर पर कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी ने कहीं। इस अवसर पर शीला त्रिपाठी, प्रो. अवधेश कुमार शुक्ला, अकादमिक अधिष्ठाता- प्रो. आलोक श्रोत्रिय, प्रो. पी. के. सामल, निदेशक-बिरसा मुंडा चेयर, अधिष्ठाता योग संकाय एवं प्रभारी वित्त अधिकारी, प्रो. जितेंद्र कुमार शर्मा प्रो. एन.एस. हरि नारायण मूर्ति अधिष्ठाता भेषज संकाय एवं प्रभारी कुलसचिव, एवं विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी डॉ. विजय नाथ मिश्र सहित विश्वविद्यालय के शैक्षणिक तथा प्रशासनिक अधिकारियों, एनसीसी कैडेट, विश्वविद्यालय के सुरक्षा एवं सपोर्टिंग स्टाफ सहित लगभग 300 प्रतिभागियों ने सहभाग किया। इसके पूर्व कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन एवं महर्षि पतंजलि की प्रतिमा पर पुष्पार्पण के साथ हुआ।

प्रो. जितेंद्र कुमार शर्मा अधिष्ठाता, योग संकाय ने श्वेताश्वतर उपनिषद का उदाहरण देते हुये योग के उद्देश्य सहित योग हेतु समुचित स्थान एवं ध्यान के समय रखी जाने वाली विशेष शारीरिक स्थिति पर प्रकाश डाला। बताया कि योग दुखों से आत्यंतिक निवृत्ति के साथ नि:श्रेयस की प्राप्ति का भारतीय मनीषियों द्वारा प्रदत्त दिव्य उपहार है।

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के ध्येय वाक्य “स्वयं और समाज के लिए योग” के अनुरूप लोक स्वास्थ्य संवर्धनार्थ कॉमन योग प्रोटोकॉल का डॉ हरेराम पाण्डेय एवं कॉमन योग प्रोटोकॉल का संयुक्त डिमोन्सट्रेशन योग विभाग के आचार्य डॉ श्याम सुंदर पाल, डॉ संदीप ठाकरे, पीएचडी एवं परास्नातक योग की छात्र/छात्राओं रमाशंकर सिंह ठाकुर, प्रखर त्यागी एवं राधा पटेल द्वारा किया गया। वस्तुतः कॉमन योग प्रोटोकॉल का नियमित अभ्यास प्रचार- प्रसार से ही सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया: की आर्षभावना को साकार किया जा सकता है।

हिन्दुस्थान समाचार/ राजेश शुक्ला/मुकेश