मप्र: विस चुनाव: भाजपा सरकार ने बढ़ाया जनजातीय समाज का गौरव, सम्मान
भाजपा सरकार के 20 सालों में सशक्त और समृद्ध हुआ जनजातीय समाज
भोपाल, 25 अक्टूबर (हि.स.)। आजादी के बाद देश-प्रदेश में लंबे समय तक कांग्रेस की सरकारें रहीं, लेकिन इन सरकारों ने जनजातीय समाज कल्याण के लिए उस तरह के प्रयास नहीं किए, जैसे भाजपा की सरकार द्वारा बीते 20 सालों में किए गए हैं। केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद इन प्रयासों में और भी तेजी आई है, जिसके परिणाम भी दिखाई देने लगे हैं। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप न सिर्फ प्रदेश का जनजातीय समाज गौरान्वित महसूस कर रहा है, बल्कि सशक्त और आर्थिक रूप से समृद्ध भी हुआ है।
कांग्रेस ने नीतियां बनाईं, पर लागू नहीं की
प्रदेश के झाबुआ निवासी सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मण नायक बताते हैं कि देश और प्रदेश में लंबे समय तक कांग्रेस की सरकारें रहीं और जनजातीय क्षेत्रों में अधिकांश समय कांग्रेस पार्टी का ही दबदबा रहा। लेकिन कांग्रेस पार्टी को जितना समर्थन जनजातीय समाज से मिला, उसके अनुपात में कांग्रेस ने इस समुदाय को महत्व नहीं दिया। उन्होंने जनजातीय समाज को उपेक्षित रखा। कांग्रेस पार्टी जनजातीय समुदाय को वोट बैंक ही समझती रही। कांग्रेस पार्टी ने जो वादे जनजातीय समाज से किए, उन्हें पूरा नहीं किया। जो नीतियां बनाई लागू नहीं की। जनजातीय आबादी के अनुसार जो उप योजनाएं बनीं, उनका अनुसरण नहीं किया। कांग्रेस की सरकारों ने जनजातीय क्षेत्रों में न शिक्षा और स्वास्थ्य की चिंता की, न आवागमन और सिंचाई जैसी सुविधाओं पर फोकस किया। यही वजह रही कि कांग्रेस के शासनकाल में जनजातीय समाज के लोगों का सबसे ज्यादा विस्थापन और पलायन हुआ और जनजातीय बहुल क्षेत्रों का विकास नहीं हो सका।
जनजातीय समाज को धोखा देती रही है कांग्रेस
लंबे समय तक वनवासी कल्याण परिषद के साथ काम कर चुके सुंदर दास कहते हैं कि आजादी के बाद लंबे समय तक कांग्रेस जनजातीय समाज को वोट बैंक समझकर छलती रही है। कांग्रेस की गतिविधियां कुछ परिवार या क्षेत्रों तक ही सीमित रही, उनका लाभ समग्र जनजातीय समाज को कभी नहीं मिला। मध्यप्रदेश में 41 साल तक कांग्रेस की सरकारें रहीं, लेकिन कभी भी उसने दलित, आदिवासी समाज को उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया, बल्कि इसके लिए राजपरिवारों के सदस्यों, धन्ना सेठों और गांधी परिवार के दरबारियों को ही चुना जाता रहा। वहीं, जनजातीय समाज से आने वाले रिटायर्ड राजस्व अधिकारी हेमसिंह अलावा कहते हैं कि कांग्रेस की सरकारों ने दलितों, आदिवासियों के लिए केंद्र से मिलने वाले फंड को कभी भी पूरी तरह उपयोग नहीं किया। काम न होने की वजह से राशि लेप्स हो जाती थी।
आंकड़े बताते हैं भाजपा और कांग्रेस सरकारों का फर्क
जनजातीय समाज के उत्थान के लिए काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता मधुभाई मकवाना का कहना है कि आदिवासियों के लिए कांग्रेस और भाजपा सरकारों द्वारा किए गए कामों को आंकड़ों के रूप में देखें, तो दोनों के बीच का फर्क समझ में आ जाता है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस की सरकार के समय 2003 में जनजातीय कार्य विभाग का बजट 746.6 करोड़ रुपये था, जिसे 2022-23 तक मोदी सरकार ने बढ़ाकर 10813 करोड़ कर दिया है। इस हिसाब से बजट में 1348 प्रतिशत की वृद्धि की गई है। उन्होंने कहा कि केंद्र में 10 वर्ष तक कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार थी, जिसने देश भर में आदिवासी कल्याण के लिए मात्र 29,000 करोड़ रुपये दिए थे। लेकिन मोदी सरकार बनने के बाद आदिवासी कल्याण पर 1,32,000 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। उन्होंने बताया कि भाजपा की सरकार ने प्रदेश के जनजातीय क्षेत्रों में 63 आवासीय विद्यालय खोले हैं, जबकि मध्यप्रदेश सरकार ने 95 सीएम राइज स्कूल खोले हैं। कांग्रेस के समय में सिर्फ 03 कन्या शिक्षा परिसर थे, जिन्हें भाजपा की सरकार ने 84 तक पहुंचा दिया है। कांग्रेस के समय में 725 आश्रम थे, जिन्हें भाजपा की सरकार ने 1083 तक बढ़ा दिया है। कांग्रेस के समय में खेल परिसरों की संख्या महज 14 थी, जिन्हें भाजपा की सरकार ने 26 तक पहुंचा दिया है। आज प्रदेश के आश्रमों, छात्रावासों, विद्यालयों, एकलव्य शालाओं, कन्या शिक्षा परिसर एवं क्रीड़ा परिसरों में लगभग 24 लाख जनजातीय विद्यार्थी अध्ययन कर रहे हैं।
भाजपा सरकारों ने जगाया जनजातीय समाज में आत्मविश्वास
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश सह मीडिया प्रभारी विवेक तिवारी का कहना है कि कांग्रेस की सरकारों के समय जनजातीय समाज के लोग मूलभूत सुविधाओं से ही वंचित थे, ऐसे में विकास की बात सोचना ही बेमानी है। प्रदेश का जनजातीय समाज अपने आपको बाकी दुनिया से कटा महसूस करता था। भाजपा की सरकारों ने उन्हें मूलभूत सुविधाएं दीं। उनके आराध्य देवों, महापुरुषों को सम्मान दिया, जिसके बाद बाकी दुनिया में भी उनके प्रति सम्मान का भाव आया। समाज के शैक्षणिक विकास के लिए स्कूल, कॉलेज, स्कॉलरशिप, विदेशों में पढ़ाई की व्यवस्था की। जिसके चलते आदिवासी समाज के लोगों में आत्मविश्वास बढ़ा है और आज समाज के लोग भी विकास के रास्ते पर बाकी दुनिया के साथ कदम मिलाकर चलने को तैयार हैं।
हिन्दुस्थान समाचार/ केशव दुबे