भारत को विश्व गुरू बनाने के लिये धर्म की कमान धर्माचार्यों पर हो : डॉ. स्वामी राघवाचार्य

 


मुरैना, 28 अप्रैल (हि.स.)। भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए धर्म व सनातन का नियंत्रण धर्माचार्यों को सौंप देना चाहिए। सत्ता अपने अधीन धर्म व सनातन को रखकर भारत को विश्वगुरु नहीं बना सकती। भारतीय संस्कृति व सभ्यता को मजबूत करने के लिए भारतीय जन के लिए धर्म व सनातन की शिक्षा आरंभ से ही आवश्यक है।

यह विचार श्रीमज्जगद्गुरु स्वामी डाक्टर राघवाचार्य महाराज ने रविवार को पत्रकारों से बातचीत करते हुए व्यक्त किए। स्वामी राघवाचार्य जी जिला के प्रसिद्ध धर्म स्थल सिद्धधाम श्री ब्रह्मबालाजी महाराज जींगनी पर श्रीराम कथा का व्यास गद्दी से वाचन कर रहे हैं। वह धर्मप्रेमियों को प्रतिदिन भगवान श्रीराम के जीवन चरित्र की कथाओं का श्रवण कराकर धर्मलाभ प्रदान कर रहे हैं। इस कथा का आयोजन जींगनी बालाजी के महंत श्री श्यामबिहारी दास जी महाराज द्वारा श्री हनुमत् जयंती महोत्सव के पावन पर्व पर कराया जा रहा है।

स्वामी राघवाचार्य ने पत्रकारों के सवाल का जबाव देते हुये कहा कि देश में धर्म को जन-जन के दिलोदिमाग तक ले जाने का कार्य धर्माचार्याे के माध्यम से किया जाना चाहिए। देश की सरकार इस ओर गंभीरता से विचार कर कार्य करे। धर्म व राजनीति का गहरा संबंध बताते हुये उन्होंने कहा कि राजनीति में धर्म नहीं होगा तब राजनीति का पथ भ्रमित हो सकता है। इससे मानव को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। भारतीय संस्कृति में सत्ता व राजनीति को दशा और दिशा प्रदान करने का कार्य धर्माचार्यों द्वारा ही आदिकाल से कराया जा रहा है। यह प्रक्रिया आज भी जारी रहनी चाहिए।

डा. राघवाचार्य ने गृहस्थ व सन्यासी मेें कठिन जीवन की व्याख्या करते हुये बताया कि गृहस्थ जीवन ही सबसे कठिन है। मानव के गृहस्थ जीवन की प्रक्रिया पूर्ण करने के बाद बानपृस्थ की ओर गमन करता है। यही से सन्यासी जीवन का मार्ग आरंभ हो जाता है। यानि कि गृहस्थ जीवन से ही सन्यासी जीवन का मार्ग तय होता है। वर्तमान दौर में भौतिक सुख-सुविधाओं की ओर गमन कर रही नई पीढ़ी को मानसिक शांती के लिये धर्म की ओर प्रस्थान करना पड़ेगा। पारिवारिक जीवन की संमृद्धि धर्म के बिना अधूरी है। आज एकांकी जीवन का मुख्य कारण नई पीढ़ी धर्म की शिक्षा से विहीन है। तकनीकी शिक्षा पाकर धर्म के प्रति अज्ञानता ही मानव के जीवन में अशांती का कारण बनता है। इसलिये मानव को शांती के लिये अध्यात्म और आध्यात्म को पाने के लिये सत्संग की महती आवश्यकता है। मानव में परोपकार की भावना तथा दयाभाव के साथ ईश्वर का सत्संग किया जाता है। तब वह उसे भक्ति मार्ग पर ले जाता है। सृष्टि में 33 कोटि देवी देवताओं का वास होने के प्रश्न पर डा. राघवाचार्य जी ने बताया कि परमात्मा एक है और उसकी आराधना करने से ही सभी देवी देवताओं की उपासना पूर्ण हो जाती है। इसलिये परमपिता परमात्मा की कृपा से भगवन श्रीरामचन्द्र जी की आराधना व पूजा किये जाने से सभी देवता प्रसन्न हो जाते हैं। स्वामी राघवाचार्य जी ने चर्चा के बाद उपस्थित सभी पत्रकारों का सम्मान किया।

हिन्दुस्थान समाचार/ उपेंद्र/मुकेश