भौतिक संसाधनों का सुख सच्चा सुख नहीं होता है : सुप्रभ सागर

 


नीमच, 20 अगस्त (हि.स.)। प्रभु भक्ति का सुख सच्चा सुख होता है। भौतिक संसाधनों का सुख सच्चा सुख नहीं होता है। मन चंचल होता है वह सदैव अभाव में जीता है उसे दूर की वस्तु अच्छी लगती है। जबकि वास्तविक सच यह है कि जो अपने पास है वही सच होता है ।उसी में व्यक्ति को संतुष्ट रहना चाहिए लेकिन आधुनिक युग में व्यक्ति की आसक्ति इतनी बढ़ गई है कि वह जो अपने पास नहीं है उसकी जिज्ञासा करता है और दुःखी हो जाता है। परमात्मा ने उसे बहुत कुछ दिया है लेकिन फिर भी वह जो चीज नहीं है उसके लिए दुःखी हो जाता है। जो है जितना है उसी में संतुष्ट रहना चाहिए तभी उसके जीवन का कल्याण हो सकता है और आत्म शांति मिल सकती है।

यह बात सुप्रभ सागर जी महाराज साहब ने कही।वे पार्श्वनाथ दिगंबर जैन समाज नीमच द्वारा दिगम्बर जैन मंदिर‌ में आयोजित धर्म सभा में बोल रहे थे । उन्होंने कहा कि जैन धर्म का स्पष्ट मत है कि सामायिक तपस्या प्रतिक्रमण वआत्म चिंतन करने से जो सुख मिलता है वह संसार में और कहीं नहीं मिलता है। साधु संत लोगों के कल्याण के लिए निःशुल्क ध्यान सीखाते हैं लेकिन लोगों को इसमें रुचि नहीं होती है ।लोग हजारों रुपए देकर फाइव स्टार होटल में ध्यान सीखने जाते हैं चिंतन का विषय है । युवाओं को पीढ़ी किधर जा रही है। युवा वर्ग10रुपए में आयुर्वेदिक जड़ी बूटी से घर के रसोई घर से ही उपचार हो जाता है वह उसे अच्छा नहीं लगता है₹800 देकर अंग्रेजी दवाइयां से अपना उपचार करना स्टेट सिंबल समझता है। महंगाई के युग में हर व्यक्ति चाहता है कि महंगा इलाज कराओ जबकि इलाज सस्ता हो या महंगा गुणवत्ता पूर्ण होना चाहिए। मनुष्य की सोच में भी परिवर्तन आ गया। विनोबा भावे अपने जीवन में अधिकतर समय मौन व्रत करते थे इससे उनके मन को शांति मिलती थी। कोई चीज नित्य नहीं है ।

मुनि वैराग्य सागर जी मसा ने कहा कि मानव धरती पर अकेला ही जन्म लेता है और अकेला ही मरता है इसलिए उसे सदैव पुण्य कर्म करते रहना चाहिए। यदि मानव रोगी होता है तो दुःख भी उसे अकेले ही सहन करना होते हैं क्योंकि उसके कर्मों के अनुसार ही उसे दुःख सुख मिलते हैं। पुण्य कर्म करने से ही आत्मा को शांति मिलती है।सम्यक दृष्टि जीव अनाशक्त जीवन जीते हैं। मनुष्य ने पेट को मशीन की तरह बना लिया है और वह सिर्फ ज्यादा खाता रहता है। संयम जीवन का पालन करना चाहिए और आहार आवश्यकता अनुसार ही ग्रहण करना चाहिए। भूख लगने के बाद ही आहार ग्रहण करना चाहिए। सिकंदर ने पूरी विश्व विजय करने के बाद भी आखिर में विश्राम ही किया जो की ऋषि मुनि पहले से ही कर रहे हैं ।हमें चिंतन करना चाहिए कि हम पूरे विश्व का धन एकत्र करने के बाद भी वहीं के वहीं रह जाएंगे।परम पूज्य चारित्र चक्रवर्ती 108 शांति सागर जी महामुनि राज के पदारोहण के शताब्दी वर्ष मे परम पूज्य मुनि 108 श्री वैराग्य सागर जी महाराज एवं परम पूज्य मुनि 108 श्री सुप्रभ सागर जी महाराज जी का पावन सानिध्य मिला। उक्त जानकारी दिगम्बर जैन चातुर्मास समिति के स्वागत अध्यक्ष जंबू कुमार जैन, मिडिया प्रभारी अमन विनायका ने दी।

हिन्दुस्थान समाचार / अशोक झलोया / राजू विश्वकर्मा