नवरात्रि पर विशेष : मंदसौर में मां का ऐसा मंदिर जहां मां और भैरव एक ही गद्दी पर विराजमान
मंदसौर, 2 अक्टूबर (हि.स.)। शहर में स्थित नालछा माता का मंदिर मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध माता मंदिरों में शुमार है। कहा तो ये भी जाता है कि पूरे विश्व में यह ही एकमात्र ऐसा मंदिर हैं जहां बाबा भैरव और भवानी एक ही गादी पर विराजमान है। बताया जाता है कि भगवान श्रीराम के पिता राजा दशरथ के द्वारा स्थापित की गई नालछा माता की प्रतिमा सुबह से लेकर रात तक तीन रूप धारण करती है, जिसमें पहली बाल्यवस्था, दूसरी युवावस्था और तीसरी वृद्धावस्था शामिल रहती है। मां नालछा को मंदसौर की आराध्य देवी भी माना जाता है।
मंदसौर में मां नालछा का यह मंदिर भगवान पशुपतिनाथ के मंदिर के बाद नगर का दूसरा सबसे बड़ा आस्था का केंद्र माना जाता है। नवरात्र के आते ही माता रानी का दरबार सज चुका है तो भक्त भी मां नालछा के दर्शन के लिए आतुर नजर आ रहे हैं। नवरात्र के नौ दिनों तक भव्य रूप से मां की आराधना भक्तों द्वारा की जाती है। पंचमी को विशेष श्रृंगार दर्शन होते है जिसके दर्शन वंदन करने हेतु दूर - दूर से भक्तगण मंदिर आते है। मां के नाम पर ही गांव का नाम भी नालछा गांव है, जहा मां विराजित हैं। नवरात्रि में यहां विशेष आयोजन होते हैं। नवरात्रि में माता का सोने-चांदी के आभूषणों से विशेष श्रृंगार किया जाता है। मां नालछा का अद्वितीय श्रृंगार मन मोह लेता है। पूरे साल माता के इस मंदिर में कई आयोजन होते रहते हैं। हर रविवार को मां की विशेष आरती होती है, जिसमें मंदिर में खासी भीड़ होती है।
नालछा माता मंदिर के पुजारी संजय शर्मा ने बताया कि जिले के किसानों के लिए भी मां नालछा वरदान हैं। मां के दरबार में किसान अपनी फसल से पहले पूरे साल के मौसम का रुख जानने आते हैं। नवरात्रि की घटस्थायना के साथ यहां कलश में ज्वारे डालकर माता की प्रतिमा के आगे रख दिए जाते हैं। वहीं पुजारी ने बताया कि कलश में उगे ज्वारे से पूरे साल का अनुमान लगाया जाता है। जैसे-जैसे ज्वारे सीधे हो तो साल बहुत अच्छा निकलेगा और छोटे मुरझाए हुए हो तो साल में मौसम मिला-जुला रहेगा। वहीं ज्वारे का नहीं उगना सूखे पड़ने को दशार्ता है। ज्वारे आधे उगना खंड वर्षा की स्थिति को दशार्ता है। इस तरह यहां किसान बारिश पूरे साल के मौसम के स्थिति का पूवार्नुमान लगा लेते हैं।
यहां गोद भराई से गूंज उठती है किलकारियों की गूंज
नालछा माता के दरबार गोद भराई की रस्म की जाती है बताया जाता है कि जिन महिलाओं की गोद सूनी है और उन्हें बच्चे नहीं हो रहे हैं तो यहां गोद भराई होने से उनके सुने आंचल में किलकारियों की गूंज सुनाई देने लगती है।
चूल का होता है आयोजन
नवरात्र के बाद मंदिर पर चूल का आयोजन होता है जिसमें जलते अंगारों पर भक्तगण नंगे पैर सुरक्षित होकर दौड़ जाते है। प्रतिवर्ष नवरात्र के बाद होने वाले इस आयोजन में बडी संख्या मे भक्त सम्मिलित होते है।
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हिन्दुस्थान समाचार / अशोक झलोया