जबलपुर : नहीं रहे प्रखर विचारक प्रशांत बाजपेयी
जबलपुर, 24 अगस्त (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ,महाकौशल के सह प्रांत प्रचार प्रमुख प्रशांत वाजपेयी के असामयिक देवलोकगमन हो गया है। आप प्रचार विभाग के आधार स्तम्भ के साथ प्रखर वक्ता एवं चिंतक रहे हैं। अनेक विषयों की गहरी समझ, समाज, राष्ट्र, धर्म के मर्म का ज्ञान आपकी विशेषता थी। आप कॉलम राइटर एवं ड्रैगन पर नकल कैसे-कैसे जैसे प्रसिद्ध पुस्तकों के लेखक हैं। आप महाकौशल फिल्म डेवलपमेंट सोसाइटी के अध्यक्ष रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि प्रशांत जी का व्यक्तित्व और ह्रदय बहुत बड़ा था। वे समय के कुशल पारखी थे और देश दुनिया के तमाम विषयों पर उनकी गहरी पकड़ और पारखी दृष्टि हमेशा बनी रहती थी। वे अपनी किशोरावस्था से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए और फिर क्रमशः विभिन्न दायित्वों का निर्वहन करते रहे। महाकौशल प्रांत के सह प्रान्त प्रचार प्रमुख के रूप में वे निरंतर राष्ट्रीय विचारों और समाज के विविध विषयों को लेकर काम कर रहे थे। उनके काम करने की अपनी शैली थी। वे जो काम अपने हाथों में लेते थे उसे परफेक्शन के साथ पूरा करते थे। महाकौशल प्रांत में प्रचार विभाग को सुव्यवस्थित आकार देने में उनकी बड़ी भूमिका रही है। वे वर्तमान के साथ भविष्य आधारित सोच के साथ काम करते थे।वे ख्यातिलब्ध स्तंभकार के रूप में जाने जाते थे। उनका गहन अध्ययन, तथ्य और सत्य पर आधारित विश्लेषण उनकी लेखनी की धार को पैना बनाता था । वे पाञ्चजन्य सहित देश के विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं और वेबसाइट पर वे निरंतर लिखते रहते थे। सुरुचि प्रकाशन नई दिल्ली से स्वयंसेवक के जीवन पर आधारित 'धर्मक्षेत्रे' उनकी चर्चित पुस्तक थी।
प्रशांत वाजपेयी रास्वसंघ के किसी भी दायित्व में रहे हों। उन्होंने हमेशा संघ के आदर्श स्वयंसेवक की भूमिका का सर्वदा सम्यक ढंग से निर्वहन किया । उन्हें जब जो भूमिका मिली उस पर उन्होंने पूरी तन्मयता और निष्ठा से काम किया। अपने काम से जाने और पहचाने गए। सबको एक साथ एक माला में पिरोकर रखना ।स्वयंसेवकों, कार्यकर्ताओं की चिंता करना। समय - समय पर विविध विषयों को लेकर प्रबोधन करना ; यह सब उनका मूल स्वभाव था। जब 'संघ परिवार' कहते हैं तो इसीलिए क्योंकि संघ का प्रत्येक स्वयंसेवक - विराट परिवार का अभिन्न अंग होता। स्वयंसेवकों का सुख-दु:ख साझा होता है। उनके इस तरह से अनाचक ह्दयघात से देवलोक गमन पर जबलपुर समेत पूरे मध्य प्रदेश और देश के देशभक्त लेखक, पत्रकार और साहित्यकार ही नहीं उनके घोर आलोचक रहे विद्वान भी अपना दुख व्यक्त कर रहे हैं।
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हिन्दुस्थान समाचार / विलोक पाठक / डॉ. मयंक चतुर्वेदी