रतलाम: देशभक्ति का पर्याय थे कवि प्रदीप
रतलाम, 6 फ़रवरी (हि.स.)। राष्ट्रकवि और अपनी रचनाओं के माध्यम से देशभक्ति का अलख जगाने वाले महान गीतकार कवि प्रदीप के जन्मदिवस पर मंगलवार को सांस्कृतिक साहित्यिक संस्था शिक्षक सांस्कृतिक संगठन द्वारा उन्हें पुष्पांजलि अर्पित करते हुए उनका स्मरण किया।
ए मेरे वतन के लोगों जरा याद करो कुर्बानी यह पंक्तियां जब हम आज भी सुनते हैं तो हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं आजादी के दीवानों के सम्मान में लिखी गई यह पंक्तियां भारतीयों के दिल में और मन मस्तिष्क पर हमेशा हमेशा के लिए अंकित हो गई है कई सदियों तक यह पंक्तियां गूंजती रहेगी और आने वाली पीढ़ी के लिए देशभक्ति के प्रेरणा गीतों में सदा प्रेरणा का कार्य करेगी।
आरंभ में वरिष्ठ साहित्यकार चिंतक शिक्षाविद डॉक्टर मुरलीधर चांदनी वाला ने कहा कि कवि प्रदीप हमारे रग रग में बसे हुए हैं । भारत चीन युद्ध के बाद भारतीयों के मनोबल को बढ़ाने के लिए लिखा गया यह गीत प्रत्येक भारतवासी के मन में रचा हुआ है ,बसा हुआ है । यही नहीं उनकी पहचान थी अपितु उन्होंने और भी कई श्रेष्ठ गीतों की रचना की थी। उन्हें स्वयं गाया भी था आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की जिसमें संपूर्ण भारतवर्ष का उल्लेख मिलता है । आश्चर्य होता है कि उनके जैसे महान कवि के जीवन परिचय को वर्तमान पाठ्य पुस्तकों में स्थान नहीं दिया गया है उन्हें आने वाली पीढ़ी से परिचित कराना अत्यंत आवश्यक है।
कवि प्रदीप के भतीजे वरिष्ठ पत्रकार शरद जोशी ने कहा कि कवि प्रदीप मालवा की मिट्टी के अनमोल रतन थे । बडऩगर में उनका बचपन बीता। रतलाम उनका ननिहाल था, कामदार रामलाल जोशी उनके नाना थे। उनके यहां रहकर उन्होंने माणक चौक स्कूल उस वक्त दरबार हाई सेकेंडरी स्कूल कहलाता था वहां प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने 85 हिंदी फिल्मों में लगभग 1800 गीत लिखे । फिल्मी दुनिया का सर्वोच्च पुरस्कार बाबा साहेब फाल्के पुरस्कार भी उन्हें मिला और भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद ने उन्हें राष्ट्रीय कवि का दर्जा दिया था और भारत के प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी के वह बडऩगर में सहपाठी रहे।
मंच के अध्यक्ष दिनेश शर्मा ने कहा कि कवि प्रदीप की रचनाएं हमको सीधे देशभक्ति से जोड़ती है । 15 अगस्त और 26 जनवरी के राष्ट्रीय त्योहार उनके लिखे गीतों से ही महक रहे हैं । नई पीढ़ी को उनकी और भी रचनाओं से अवगत कराना आवश्यक है । वह सही मायने में एक राष्ट्रीय कवि थे जिनकी शब्द रचनाएं पूर्णतया राष्ट्र को समर्पित होती थी। फिल्मों से जुड़े होने के बावजूद उन्होंने भारतीयता को अपने से जोड़ रखा । शुद्ध सात्विक शब्दावली उनके गीतों की पहचान हुआ करती थी वह हर पीढ़ी के कवि रहे हैं उनके लिखे हुए गीत हरदौर में लोकप्रिय रहे हैं।
शिक्षिका रक्षा के.कुमार ने कहा कि नई पीढ़ी को देशभक्ति का पाठ पढऩे के लिए उनके गीतों का प्रकाशन पाठ्य पुस्तकों में निरंतर होना चाहिए। संस्था सचिव दिलीप वर्मा ने कहा कि कवि प्रदीप मालवा की मिट्टी के अनमोल रतन थे। यह हमारे सौभाग्य की बात है कि उनका नाम रतलाम से भी जुड़ा हुआ है।
परिचर्चा में प्राचार्य ओ.पी. मिश्रा, डा.सुलोचना शर्मा, गोपाल जोशी, कृष्णचंद्र ठाकुर, राधेश्याम तोगड़े, नरेन्द्रसिंह राठौर, रमेश उपाध्याय, मदनलाल मेहरा, भारती उपाध्याय, वीणा छाजेड़, कविता सक्सेना, अनिल जोशी, नरेन्द्रसिंह पंवार, कमलसिंह राठौर सहित अनेक गणमान्य साहित्यकार एवं शिक्षकों ने भाग लिया। आभार दशरथ जोशी ने माना।
हिन्दुस्थान समाचार/ शरद जोशी/मुकेश