जबलपुर : सरकारी नर्सिंग कॉलेजों में 100% महिला आरक्षण पर हाईकोर्ट ने जारी किया नोटिस

 


जबलपुर, 30 दिसंबर (हि.स.)। मध्य प्रदेश के सरकारी नर्सिंग कॉलेजों में शैक्षणिक पदों पर की जा रही नियुक्तियों को लेकर एक अहम कानूनी विवाद सामने आया है। असिस्टेंट और एसोसिएट प्रोफेसरों सहित कुल 286 पदों पर महिलाओं के लिए सौ फीसदी आरक्षण दिए जाने को चुनौती देने वाली याचिका पर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने संज्ञान लिया है। सोमवार को जस्टिस अमित सेठ और जस्टिस हिमान्शु जोशी की वेकेशन बेंच ने इस मामले में राज्य सरकार सहित अन्य अनावेदकों को नोटिस जारी करने के निर्देश दिए।

यह याचिका सिहोरा निवासी पुरुष नर्सिंग शिक्षक नौशाद अली द्वारा दायर की गई है। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आलोक बगरेचा ने अदालत में पक्ष रखा। प्रारंभिक सुनवाई के बाद हाईकोर्ट की वेकेशन बेंच ने याचिका में बनाए गए सभी अनावेदकों को नोटिस जारी करते हुए उनसे जवाब तलब किया है। कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख पांच जनवरी निर्धारित की है और तब तक राज्य सरकार व अन्य पक्षों को अपना पक्ष स्पष्ट करने के निर्देश दिए हैं।

याचिका में बताया गया है कि मध्य प्रदेश के सरकारी नर्सिंग कॉलेजों में ग्रुप-1, सबग्रुप-2 एवं कंबाइंड रिक्रूटमेंट टेस्ट-2025 के तहत जारी विज्ञापन में कुल 286 शैक्षणिक पद केवल महिला उम्मीदवारों के लिए आरक्षित कर दिए गए हैं। इनमें 40 पद एसोसिएट प्रोफेसर के, 28 पद असिस्टेंट प्रोफेसर के तथा 218 पद सिस्टर ट्यूटर और ट्यूटर के शामिल हैं। याचिकाकर्ता का आरोप है कि इन सभी पदों को केवल महिलाओं के लिए आरक्षित करना न केवल नियमों के विपरीत है, बल्कि संविधान द्वारा प्रदत्त समान अवसर के अधिकार का भी उल्लंघन है।

नौशाद अली का दावा है कि वह पूरी तरह से योग्य और पात्र नर्सिंग शिक्षक हैं। इसके बावजूद उन्हें केवल पुरुष होने के कारण चयन प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया है। याचिका में कहा गया है कि इस प्रकार के प्रावधान से पुरुष उम्मीदवारों को पूरी तरह वंचित कर दिया गया है, जो समानता के सिद्धांत के खिलाफ है।

याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया है कि संविधान और न्यायिक व्याख्याओं के अनुसार महिलाओं के लिए आरक्षण अधिकतम 33 प्रतिशत तक ही किया जा सकता है। ऐसे में सरकारी नर्सिंग कॉलेजों में शत-प्रतिशत आरक्षण देना न केवल अवैधानिक है, बल्कि यह भारतीय संविधान की मूल भावना और समान अवसर की अवधारणा के भी विपरीत है। याचिका में यह प्रश्न भी उठाया गया है कि क्या किसी भी शैक्षणिक या सरकारी पद पर केवल एक ही वर्ग के लिए पूर्ण आरक्षण किया जाना न्यायसंगत कहा जा सकता है।

हाईकोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए राज्य सरकार और अन्य संबंधित पक्षों से जवाब मांगा है। अब इस मामले की अगली सुनवाई पांच जनवरी को होगी, जिसमें यह स्पष्ट हो सकेगा कि राज्य सरकार इस सौ फीसदी महिला आरक्षण के प्रावधान को किस आधार पर सही ठहराती है।

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हिन्दुस्थान समाचार / विलोक पाठक