ज्ञान के स्रोत पुस्तकालय को समाज का अभिन्न हिस्सा बनाएं- मुख्यमंत्री डॉ. यादव

 


भोपाल, 22 अगस्त (हि.स.)। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि पुस्तकालयों के आधुनिकीकरण, स्वचालन, नेटवर्किंग, डिजिटलीकरण, ग्रीन लाइब्रेरी और नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में पुस्तकालय के महत्व जैसे विषयों पर चिंतन और विचार विमर्श जरूरी है। इससे पुस्तकालयों के आधुनिकीकरण और समसामयिक शिक्षा प्रणाली में उनकी उपयोगिता बनाए रखने का मार्ग प्रशस्त होगा। सूचना प्रौद्योगिकी के कारण बदलते परिवेश में पुस्तकालय समाज में ज्ञान के स्रोत की भूमिका निरंतर निभाते रहें, इसके लिए जरूरी है कि हम सभी पुस्तकालयों को समाज का अभिन्न हिस्सा बनाएं। मुख्यमंत्री डॉ. यादव गुरुवार काे विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन द्वारा बदलते शैक्षणिक एवं सामाजिक परिवेश में लाइब्रेरी की भूमिका और चुनौतियां विषय पर आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस के शुभारंभ सत्र को मंत्रालय से वर्चुअली संबोधित कर रहे थे।

बैंक धन का और पुस्तकालय ज्ञान का संरक्षण और प्रसार करते हैं

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि पुस्तकालय मानव इतिहास की बड़ी संपदा है। पुस्तकालय ज्ञान का संरक्षण, संवर्धन और प्रसार ठीक उसी तरह से करते हैं, जैसे बैंक समाज और राष्ट्र की धन संपदा के संरक्षण और संवर्धन की भूमिका निभाते हैं। भारतीय इतिहास में पुस्तकालयों का विशेष महत्व रहा है। नालंदा, विक्रमशिला, तक्षशिला के पुस्तकालय विद्या के केन्द्र और ज्ञान के भंडार थे, दुर्भाग्यवश यह महान केन्द्र विदेशी आक्रांताओं के निशाना बनें। उज्जैन धर्म, आध्यात्म एवं ज्ञान-विज्ञान का संगम रहा है। बाबा महाकाल, काल गणना के केन्द्र बिन्दु में विराजित हैं और उज्जैन का सांदीपनी आश्रम भगवान श्रीकृष्ण और बलराम का गुरूकुल रहा। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि जिस प्रकार से शोध अनुसंधान और अध्ययन की गतिविधियां जारी हैं, निश्चित ही उज्जैन भविष्य का ग्रीनविच बनकर भारत का गौरव बढ़ाता रहेगा।

विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन पुस्तकालय विज्ञान में प्रशिक्षण देने वाला प्रदेश का पहला विश्वविद्यालय

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि सम्राट विक्रमादित्य के नाम पर स्थापित उज्जैन का विक्रम विश्वविद्यालय पुस्तकालय विज्ञान में प्रशिक्षण देने वाला प्रदेश का पहला विश्वविद्यालय था। उज्जैन का सिंधिया ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट अपने विशाल और दुर्लभ पाण्डुलिपियों के संग्रह के लिए जाना जाता है। भारत में पुस्तकालय विज्ञान के पितामाह पद्मश्री डॉ. रंगनाथन इस विश्वविद्यालय के पहले विजिटिंग प्रोफेसर रह चुके हैं। मध्यप्रदेश में पुस्तकालय विज्ञान का शिक्षा आरंभ करने का श्रेय डॉ. रंगनाथन को ही जाता है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने संगोष्ठी में भाग ले रहे सभी विषय-विशेषज्ञों, छात्रों आदि को संगोष्ठी के सफल आयोजन के लिए शुभकामनाएं दीं।

---------------

हिन्दुस्थान समाचार / नेहा पांडे / उम्मेद सिंह रावत