स्पेशल जज ने नेगेटिव डीएनए रिपोर्ट को किया नजरअंदाज, हाईकोर्ट ने दिए जांच के आदेश

 


जबलपुर, 23 सितंबर (हि.स.)। दुष्कर्म मामले में पॉक्सो स्पेशल जज और एडीपीओ ने पारित आदेश में नेगेटिव डीएनए रिपोर्ट को नजरअंदाज किया गया था। हाईकोर्ट की डिविजनल बेंच ने इनके खिलाफ जांच के आदेश दिए हैं। मप्र हाइकोर्ट ने उमरिया जिले के दुष्कर्म के मामले में निचली अदालत से पारित एक फैसले को रद्द कर दिया है।

हाइकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई में लापरवाही बरतने पर एक विशेष न्यायाधीश और सहायक जिला अभियोजन अधिकारी के खिलाफ जांच के आदेश दिए हैं।

यह अपील यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO) के तहत दायर संबंधित थी। इसमें अदालत ने गंभीर अनियमितताएं पाई हैं।

पीड़िता की शिकायत पर आरोपित, उसकी पत्नी और बेटे के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 363, 366- ए, 376 (2) (एन), और POCSO अधिनियम की धारा 5/6 के तहत FIR दर्ज की गई थी। मामले की जांच के दौरान पुलिस ने डीएनए रिपोर्ट प्राप्त की थी, जो 31 अक्टूबर 2022 को सागर के राज्य विधि विज्ञान प्रयोगशाला द्वारा तैयार की गई थी।

यह रिपोर्ट विशेष न्यायाधीश विवेक सिंह रघुवंशी और एडीपीओ बी. के. वर्मा के पास पहुंचाई गई थी। लेकिन रिपोर्ट को अनदेखा करते हुए जज ने आदेश जारी कर दिया। शासन की और से अधिवक्ता के द्वारा भी इस डीएनए रिपोर्ट को ना ही रिकॉर्ड पर लाया गया और ना ही सुनवाई के दौरान क्रॉस एग्जामिनेशन में आरोपी से इससे संबंधित कोई प्रश्न किए।

जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस देवनारायण मिश्रा की युगलपीठ में इस मामले की सुनवाई की गई। हाइकोर्ट ने पाया कि 14 नवंबर 2022 को डीएनए रिपोर्ट निचली अदालत में प्रस्तुत की गई थी। लेकिन विशेष न्यायाधीश ने इसे चिह्नित नहीं किया। साथ ही एडीपीओ ने इसे अभियोजन पक्ष की ओर से प्रस्तुत करने में लापरवाही बरती। यह गंभीर चूक तब सामने आई जब न्यायालय ने यह देखा कि अभियुक्त का बयान दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 313 के तहत दर्ज किया गया था। लेकिन डीएनए रिपोर्ट पर अभियुक्त से कोई सवाल नहीं पूछे गए। अदालत ने एडीपीओ और विशेष न्यायाधीश दोनों पर प्रथम दृष्टया लापरवाही का दोषारोपण किया। इस लापरवाही को देखते हुए अदालत ने फैसला किया कि मामले को फिर से ट्रायल कोर्ट में भेजा जाए, ताकि डीएनए रिपोर्ट को सही तरीके से पेश किया जा सके। अभियुक्त का बयान फिर से दर्ज किया जाए और इस मामले में ट्रायल 3 माह के भीतर पूरा किया जाए।

कोर्ट ने यह निर्देश दिया है कि मामले में डीएनए रिपोर्ट सहित सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए इसे तीन महीने के भीतर समाप्त किया जाए। साथ ही एडीपीओ बी.के. वर्मा और विशेष न्यायाधीश विवेक सिंह रघुवंशी के खिलाफ लापरवाही के आरोपों की जांच शरू करने का आदेश दिया गया है। जांच के बाद इसकी रिपोर्ट अदालत को देने का भी आदेश किया गया है। फैसला देने के पहले जरूरी है सबूतों को परखना। हाइकोर्ट का यह फैसला डिस्ट्रिक्ट और सेशन कोर्ट के जजों की जिम्मेदारी की महत्ता को रेखांकित करता है। हाईकोर्ट ने अपने आदेश से स्पष्ट किया कि न्यायालय में प्रस्तुत साक्ष्यों पर ध्यान देना जरूरी है। ऐसी किसी भी लापरवाही को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, क्योकि मुख्य तथ्यों को नजरअंदाज कर दिया गया।

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हिन्दुस्थान समाचार / विलोक पाठक