शरीर के प्रति माहे छोड़े, जीवन में मोह पर विजय पाओः योग रूचि विजयजी
मन्दसौर, 6 अगस्त (हि.स.)। मनुष्य जीवन में राग व द्वेष को समझना जरूरी है। जीवन में हम जो राग अर्थात मोह की भावना रखते है यह हमारी दुर्गति का सबसे बड़ा कारण है। राग (मोह) के कारण ही दूसरों के प्रति द्वेष उत्पन्न होता है और द्वेष हिंसा के लिये प्रेरित करता है। जीवन में यदि सद्गति पाना है तो सर्वप्रथम राग (मोह) को छोड़े। उक्त उद्गार जैन संत योग रूचि विजयजी म.सा. ने मंगलवार को नईआबादी आराधना भवन मंदिर हाल में आयोजित धर्मसभा में कहे।
उन्होंने धर्मसभा में कहा कि मनुष्य की सद्गति में जाने में सबसे बड़ा बाधक है राग की भावना। जब हम मोह को छोड़ नहीं पाते है तो यही दुर्गति का कारण बनता हैं आपने कहा कि शरीर नश्वर है इसके प्रति अधिक मोह को छोड़ धर्म आराधना का मार्ग अपनाये। वस्तुओं के प्रति राग (मोह) को छोड़ों- शरीर के साथ ही किसी भी वस्तु के प्रति मोह भी दुर्गति का कारण बन सकता है। स्त्रियों को गहनों कपड़ों के प्रति राग, पुरूषों को वाहन के प्रति राग को छोड़ना चाहिये। राग (मोह) की भावना के कारण हमारा मन धर्म आराधना में नहीं लगता। राग के कारण हम वस्तु के विषय में ही सोचते रहते है।
पृथ्वीकाय, अपकाय व वनस्पति काय में जन्म लेना पड़ेगा- यदि हम किसी वस्तु के प्रति अहधिक रोग रखेंगे तो हमारा अगला भव पृथ्वी काय, अपकाय व वनस्पति काय के जीव में हो सकता है। इसलिये जीवन में मोह को छोड़े, परमात्का की शरण में जाकर धर्म के प्रति मोह रखे।
हिन्दुस्थान समाचार / अशोक झलोया / मुकेश तोमर