मप्र: लेखानुदान पर जीतू पटवारी ने साधा निशाना, स्कूल शिक्षा और लाड़ली बहना की राशि को लेकर कही बड़ी बात

 

भोपाल, 13 फ़रवरी (हि.स.)। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने विधानसभा में पेश हुए लेखानुदान पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा है कि वित्तमंत्री ने 1 अप्रैल से 31 जुलाई तक के लिए अंतरिम बजट (लेखानुदान) पेश किया है, इसमें महिला बाल विकास विभाग को 9 हजार करोड़ से ज्यादा की राशि दी गई है। जबकि, माना जा रहा था कि लोकसभा चुनाव को देखते हुए लाड़ली बहना की राशि को बढ़ाया जाएगा, लेकिन अंतरिम बजट में इसके लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया है। इसके सिर्फ दो ही कारण हो सकते हैं। एक-वोट लेने के बाद भूल जाने की पुरानी आदत को दोहरा रही है। दूसरा- लोकसभा चुनाव में को अब महिलाओं के वोट की आवश्यकता ही नहीं है।

जीतू पटवारी ने मंगलवार को एक बयान जारी कर कहा कि विधानसभा चुनाव में जिस तरह से लाडली बहना याेजना को लेकर वादा किया गया था लेकिन, बाद में सब कुछ भुला दिया गया। भाजपा भले ही भूल गई, लेकिन महिलाएं याद रखेंगी, वे झूठ का पूरा और पक्का हिसाब लेंगी। जीतू पटवारी ने कहा कि मप्र सरकार लाड़ली बहना योजना में दी जाने वाली 1250 रुपए की राशि को नहीं बढ़ा रही है! वित्त मंत्री ने जो अंतरिम बजट पेश किया है, उसमें ये साफ हो गया है कि जुलाई तक लाड़ली बहनों को 1250 रुपए प्रति माह ही मिलेगा। समझ नहीं आता आपकी हिम्मत की दाद दूं या फिर लाड़ली बहनों के साथ हो रही धोखाधड़ी के लिए एक निंदा प्रस्ताव भेज दूं।

स्कूल शिक्षा विभाग का बजट बड़ा, स्तर घटा

जीतू पटवारी ने कहा कि अंतरिम बजट में सबसे ज्यादा 13 हजार करोड़ से ज्यादा की राशि स्कूल शिक्षा विभाग को दी गई है स्कूल शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए भाजपा सरकार मप्र में सीएम राइज स्कूल की योजना लेकर आई थी। मैंने पूर्व में भी विस्तार से आंकड़ों और बजट के जरिए मध्य प्रदेश के पिछड़े हुए शैक्षणिक परिदृश्य पर प्रकाश डाला था। बजट पर सरकार की ‘दूरदर्शिता’ को देखते हुए फिर दोहरा रहा हूं। मध्यप्रदेश में पिछले 10 साल में स्कूली शिक्षा पर 1.50 से 2 लाख करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। बावजूद इसके इस दौरान सरकारी स्कूलों में 39 लाख और निजी स्कूलों में 65 हजार बच्चे कम हो गए हैं। स्कूल शिक्षा में 2022-23 में 27 हजार करोड़ रुपए का बजट प्रावधान था। इसमें से 15205 करोड़ खर्च हुए। 2010-11 में सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या 1 करोड़ 5 लाख बच्चे थे, जिनकी संख्या 2021-22 में घटकर 66.23 लाख रह गई, क्यों?

कर्ज लेकर योजनाओं को पूरा करने की नाकाम कोशिश कर रही सरकार

जीतू पटवारी ने कहा कि कर्ज लेकर बजट की योजनाओं का मर्ज दूर करने की ऐसी कई नाकाम कोशिश से पहले भी की जाती रही हैं। असफलता और भ्रष्टाचार के कारण परिणाम हमेशा लक्ष्य से बहुत दूर ही रहा। जरूर यह है कि बजट घोषणाओं का जमीनी क्रियान्वयन पूरी ईमानदारी और तत्परता से किया जाए।

हिन्दुस्थान समाचार/ नेहा/मुकेश