भारतीय ज्ञान परम्परा की कल्पना संस्कृत के बिना सम्भव नहीं- गौतम
उज्जैन, 5 दिसंबर (हि.स.)। भारतीय ज्ञान परम्परा की कल्पना संस्कृत के बिना सम्भव नहीं है। वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना संस्कृत की पहचान रही है। एक समय भारत कभी किसी के अधीन नहीं था क्योंकि यहां के शास्त्रज्ञ समय समय पर आगे आकर अपना दायित्व निभाते रहे हैं। संस्कृत वर्ग विशेष की भाषा नहीं अपितु विश्व भाषा है। भाषण से नहीं आचरण से भारतीय ज्ञान परम्परा का संरक्षण सम्भव है।
यह बात संस्कृत भारती के अखिल भारतीय संगठन मन्त्री जयप्रकाश गौतम ने शुक्रवार को महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय,उज्जैन में संस्कृत शिक्षण प्रशिक्षण, ज्ञान विज्ञान संवद्र्धन केंद्र एवं भारतीय ज्ञान परंपरा प्रकोष्ठ के तत्वावधान में भारतीय ज्ञान परम्पराया: उपजीव्यं संस्कृतं विषय पर आयोजित विशिष्ट व्याख्यान में मुख्य वक्ता के रूप में कही।
अध्यक्षता कुलगुरु प्रो.शिवशंकर मिश्र ने की। उन्होंने कहा कि संस्था की प्रगति में सभी छात्र, अध्यापक एवं कर्मचारियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है सभी के सहयोग से ही संस्था का विकास होता है। संस्कृत के प्रचार प्रसार एवं भारतीय ज्ञान परम्परा के पुनस्र्थापन में भी हम सबका नैतिक दायित्व है। विशिष्ट अतिथि कार्यपरिषद सदस्य गौरव धाकड़ थे। उन्होंने कहा पाणिनि विवि संस्कृत एवं संस्कृति की यात्राओं को नवीन कीर्तिमान की ओर ले जाने हेतु दृढ़ संकल्पित है। संस्कृत भाषा को जन-जन तक ले जाना हम सबकी जिम्मेदारी है। संस्कृत जन भाषा बने जिससे राष्ट्रीय शिक्षा नीति के उद्देश्यों की पूर्ति शीघ्र ही हो सके। विवि की विद्यापरिषद के सदस्य प्रो.केदार नारायण जोशी ने छात्रों को संस्कृत के क्षेत्र में नवाचार करने हेतु प्रेरित किया। कुलगुरु ने गौतम को अभिनंदन पत्र भेंट किया। वाचन डॉ. तुलसीदास परोहा ने किया। मंच पर महर्षि पतंञ्जलि संस्कृत संस्थान के पूर्व अध्यक्ष भारत बैरागी उपस्थित थे। कार्यक्रम के बाद विवि परिसर में अतिथियों द्वारा पौधारोपण किया गया। संचालन कार्यक्रम संयोजक डॉ.अखिलेश कुमार द्विवेदी ने किया। स्वागत भाषण डॉ.उपेन्द्र भार्गव ने दिया। आभार डॉ.पूजा उपाध्याय ने माना। कार्यक्रम में सभी विभागाध्यक्ष, प्राध्यापक, शोधार्थी एवं छात्रगण उपस्थित थे।
---------------
हिन्दुस्थान समाचार / ललित ज्वेल