जबलपुर : राज्य सूचना आयोग को हाई कोर्ट ने जारी किया नोटिस, चार सप्ताह में मांगा जवाब
जबलपुर , 6 जून (हि.स.)। सिविल जज के फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आरोप पर, हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की बेंच ने दलीलें सुनने के बाद सूचना आयोग को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब मांगा है। मंडला जिले के आरटीआई एक्टिविस्ट (कार्यकर्ता) के द्वारा राज्य सूचना आयोग के आदेश के खिलाफ न्याय पाने और आयोग के द्वारा दिये आदेश को लेकर उच्च न्यायालय में याचिका लगाई है।
याचिकाकर्ता मुकेश श्रीवास के द्वारा इस आशय कि याचिका माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर में प्रस्तुत की गई कि अनावेदक क्रमांक 5 सिविल जज सिविल कोर्ट रेहली जिला सागर में वर्तमान में कार्यरत हैं। इन पर गंभीर आरोप यह लगा है कि वे मंडला जिले के मूलनिवासी हैं, और दस्तावेजों की जानकारी के अनुसार इनकी शिक्षा दीक्षा मंडला जिले में ही हुई है और उनकी जाति मण्डला जिले में अन्य पिछड़ा वर्ग ओबीसी की श्रेणी में आती है, जबकि अनावेदक शासकीय सेवा में आने के लिए कोटे का लाभ लेने हेतु अन्य जिले से एसटी (अनुसूचित जनजाति) का कूटरचित तरीके से फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनवाकर सरकारी नौकरी में लाभ लेकर सिविल जज के पद पर कार्यरत हैं।
याचिकाकर्ता के द्वारा एक लिखित शिकायत, पूर्व में प्रिंसिपल रजिस्ट्रार उच्च न्यायालय जबलपुर, राज्यपाल भोपाल एवं आयोग को भी समस्त दस्तावेजों के साथ की गई, लेकिन आज दिनांक तक अनावेदक के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई, तब याचिकाकर्ता के द्वारा सूचना अधिकार अधिनियम 2005 की उपधारा (6) 1 अंतर्गत लोक सेवक के द्वारा प्रथम नियुक्ति के समय विभाग के समक्ष जो भी शैक्षणिक योग्यता के दस्तावेज लगाए गए हैं, उन समस्त दस्तावेजों कि प्रमाणित छायाप्रति की जानकारी की माँग लोक सूचना अधिकारी रजिस्ट्रार उच्च न्यायालय जबलपुर से सूचना अधिकार अधिनियम 2005 की उपधारा (6) 1 अन्तर्गत माँग आवेदन के माध्यम से की थी।
माँगी गई जानकारी में धाराओं का उल्लेख करते हुए जानकारी प्रदाय नहीं गई। तब याचिकाकर्ता के द्वारा आवेदन की सुनवाई हेतु द्वितीय अपील मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयोग भोपाल में प्रस्तुत की गई, जहाँ प्रस्तुत अपील में द्वितीय अपीलीय अधिकारी के द्वारा आवेदक की बात न सुनते हुए नियम को ताक में रख कर एक पक्षीय फैसला करते हुए अपील खारिज करने का आरोप लगाया है, जबकि पूर्व में ऐसी ही मांगी जानकारी में राज्य सूचना आयोग में अपीलीय अधिकारी के द्वारा अपील को सुनकर दस्तावेज प्रदाय करने हेतु निर्देशित किया जा चुका है और आदेश में कहा भी गया था कि किसी भी लोक सवेक के शैक्षणिक योग्यता के दस्तावेज निजी या व्यक्तिगत की श्रेणी में नहीं आते हैं, पर अनावेदक के जज होने के चलते पूर्व में दिये आदेश की एक लोक सेवक के शैक्षिणिक दस्तावेज शासकीय दस्तावेज की श्रेणी में आते और माँग किए जाने में प्रदाय योग्य हैं, पर वहीं आदेश अनावेदक के लिये लागू न करते हुए उनके दस्तावेजों को व्यक्तिगत श्रेणी में आते हैं, ऐसा आदेश पारित कर दिया गया।
इस मामले में उचित न्याय पाने के लिए उस आदेश के खिलाफ माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर में याचिका दायर की गई है जिस पर चीफ जस्टिस कि बेंच ने सुना और राज्य सुचना आयोग भोपाल को नोटिस जारी करते हुए 4 सप्ताह में जवाब माँगा है । उल्लेखनीय है कि उक्त याचिका की पैरवी एडवोकेट गोपाल सिंह बघेल के द्वारा की जा रही है।
हिन्दुस्थान समाचार/ विलोक पाठक/मयंक