भगवान भाव के भूखे हैं, सुनते हैं सच्चे दिल की पुकारः पंडित प्रदीप मिश्रा

 


- बड़ा बाजार पड़ा छोटा, श्रद्धालुओं को जहां पर स्थान मिलता आराम से सुनी भागवत कथा

सीहोर, 15 सितंबर (हि.स.)। जब भी भक्त मदद के लिए भगवान को याद करता है, चाहे वह किसी भी योनि का हो, गजेद्र को भगवान ने बचाया, द्रौपती की मदद भगवान कृष्ण ने की। भगवान भाव के भूखे है, सच्चे दिल की पुकार सुनते हैं। एक हाथी की पुकार सुनकर भगवान दौड़े आए, हाथी मनुष्य नहीं जीव था। दिल से पुकारना और दिखावें से पुकारने में अंतर है। गजेंद्र मोक्ष कथा आती है, जब भगवान अपने भक्त के बुलाने पर नंगे पांव भागे चले आए। जैसे एक मां अपने बच्चे की पुकार सुनकर आती है। उसी प्रकार भगवान है।

यह विचार शहर के बड़ा बाजार में अग्रवाल महिला मंडल के तत्वाधान में जारी सात दिवसीय भागवत कथा के चौथे दिन रविवार को प्रसिद्ध कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा। रविवार को कथा के दौरान आस्था और उत्साह के साथ भगवान श्रीराम और भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया गया। इस मौके पर समधुर भजनों की प्रस्तुति दी। यहां पर कथा का श्रवण करने के लिए प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालुओं के आने से बड़ा बाजार छोटा पड़ गया है। लोगों ने भी अपने घरों के दरबाजे भक्तों के लिए खोल दिए और पूरे आदर के साथ कथा का श्रवण किया। शाम को श्रद्धालुओं के लिए भोजन प्रसादी की व्यवस्था विठलेश सेवा समिति के द्वारा की गई।

पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा कि किसी भी योनि का जीव भगवान को प्राप्त कर सकता है। जिस तरह गजेंद्र नामक हाथी जब तालाब में स्नान कर रहा था तब मगरमच्छ ने उसका पांव पकड़ लिया, मदद की पुकार पर कोई नहीं आया तो भगवान ने उसकी मदद की। इस प्रकार भगवान को प्राप्त करने के लिए जीव योनि का कोई महत्व नहीं, उच्च योनि से लेकर निम्न योनि तक का कोई भी जीव भगवद् प्राप्ति कर सकता है। हाथियों का परिवार रहता था, गजेंद्र हाथी इस परिवार का मुखिया था। एक दिन घूमते-घूमते उसे प्यार लगी, परिवार के अन्य सदस्यों के साथ ही गजेंद्र पास के ही एक सरोवर से पाने पी कर अपनी प्यास बुझाने लगा। लेकिन तभी एक शक्तिशाली मगरमच्छ ने गजराज के पैर को दबोच लिया और पाने के अंदर खीचने लगा। मगर से बचने के लिए गजराज ने पूरी शक्ति लगा दी लेकिन सफल नहीं हो सका, दर्द से गजेंद्र चीखने लगा। गजेंद्र की चीख सुनकर अन्य हाथी भी शोर करने लगे, इन्होंने भी गजेंद्र को बचाने का प्रयास किया लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। गजेंद्र जब सारे प्रयास करके थक गया और उसे अपना काल नजदीक आते दिखाई देने लगा तब उसने भगवान विष्णु का स्मरण किया और उन्हें पुकारने लगा। अपने भक्त की आवाज सुनकर भगवान विष्णु नंगे पैर ही गरुण पर सवार होकर गजेंद्र को बचाने के लिए आ गए।

राजा बलि और वामन देव की कथा की सीख, जब कोई अच्छा काम कर रहा हो तो उसे रोके नहीं

पंडित मिश्रा ने कहा कि जब भी कोई व्यक्ति अच्छा काम कर रहा हो तो उसे रोकना नहीं चाहिए। इस कहानी में शुक्राचार्य राजा बलि को दान करने से रोक रहे थे, जब हम किसी को अच्छे काम करने से रोकते हैं तो हमारी परेशानियां बढ़ती हैं। अच्छे काम करना भी पूजा-पाठ करने की तरह ही है। हमें भी नेक काम करते रहना चाहिए। आपका मन कर रहा है किसी को दान करने का तो तत्काल कर दे, इसके विषय में किसी से राय लेने की आवश्यकता नहीं, अच्छे कार्य को तुरंत करना चाहिए। भागवत कथा सुनना और भगवान को अपने मन में बसाने से व्यक्ति के जीवन में परिवर्तन आता है। भगवान हमेशा अपने भक्त को पाना चाहता है। जितना भक्त भगवान के बिना अधूरा है उतना ही अधूरा भगवान भी भक्त के बिना है। भगवान ज्ञानी को नहीं अपितु भक्त को दर्शन देते हैं और सच्चे मन से ही भगवान प्राप्त होता है। वामन अवतार के रूप में भगवान विष्णु ने राजा बलि को यह शिक्षा दी कि दंभ तथा अंहकार से जीवन में कुछ भी हासिल नहीं होता और यह भी बताया कि यह धनसंपदा क्षणभंगुर होती है। इसलिए इस जीवन में परोपकार करों। उन्होंने कहा कि अहंकार, गर्व, घृणा से मुक्त होने पर ही मनुष्य को ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है। यदि हम संसार में पूरी तरह मोहग्रस्त और लिप्त रहते हुए सांसारिक जीवन जीते है तो हमारी सारी भक्ति एक दिखावा ही रह जाएगी।

अग्रवाल महिला मंडल की अध्यक्ष ज्योति अग्रवाल ने बताया कि हर साल की तरह इस साल भी लगातार 25 वें वर्ष पंडित प्रदीप मिश्रा के द्वारा भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है। कथा के पांचवे दिवस सोमवार को गोवर्धन पूजन और छप्पन भोग लगाया जाएगा। कथा दोपहर दो बजे से आरंभ होती है।

हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश तोमर