अनूपपुर: अविभाजित शहडोल जिले में स्थानीय नेताओं का बोलबाला

 


अनूपपुर, 29 मार्च (हि.स.)। शहडोल संसदीय क्षेत्र जब सिर्फ शहडोल तक और अनूपपुर और उमरिया जिला बन जाने के बाद सिर्फ इन तीन जिलों तक सीमित था तो यहां तीन सामान्य सीट हुआ करती थी। इनमें से दो सामान्य सीट शहडोल जिले में और एक सामान्य सीट उमरिया में थी। लेकिन बाद में शहडोल जिले की सोहागपुर सामान्य सीट के विधायक छोटेलाल सरावगी और तत्कालिक कलेक्टर राघवेन्द्र सिंह के बीच ऐसा कुछ हुआ कि 2008 के परिसीमन में सोहागपुर सामान्य सीट को खत्म कर शहडोल जिले की राजनीति का कबाड़ा कर दिया। जिसमे अनूपपुर जिले की कोतमा सीट पहली बार सामान्य सीट बन गई।

कोमा में कांग्रेसः

अविभाजित शहडोल जिले की राजनीति हमेशा अनूपपुर के नेताओं के हाथ में रहीं हैं। कांग्रेस दलवीर सिंह पुष्पराजगढ़ जो सांसद व केंद्र में मंत्री रहें, संगठन में शकंर बाबू शर्मा, भाईलाल पटेल, शिवकुमार नामदेव, भाजपा से लल्लू सिंह वर्तमान में अनिल गुप्ता का नाम शामिल हैं। जिनकी शहडोल जिले की राजनीति में हमेश चली हैं। धीरे-धीरे शहडोल के स्थानिय नेता बनते गयें। इसका असर शहडोल की सामान्य सीट कम होने का पूरा असर यहां राजनीति पर पड़ा और राजनीतिक सक्रियता कम होने लगी। इससे प्रभावित तो दोनों पार्टियां हुई लेकिन कांग्रेस तो लगभग कोमा में चली गई। सत्ता की राजनीति करने वाले लोग संगठन के दायित्व से बचने की कोशिश करने लगे। संगठन में भी वही सक्रिय रहे जिन्हें बड़े पदों की लालसा थी। इस लालसा का ही परिणाम है कि जिनकी अपेक्षाएं पूरी नहीं हुई वो या तो गुटों में बंटते चले गए या फिर राजनैतिक शून्यता की आगोश में समाते चले गए। इसका ज्यादा असर कांग्रेस में ही हुआ।

अविभाजित शहडोल और विभाजित शहडोल में भी शहडोल संसदीय क्षेत्र में वर्ष 2008 के पहले तक जो तीन सामान्य विधानसभा सीट थी उनमें सोहागपुर वर्तमान की जयसिंहनगर, ब्यौहारी और उमरिया वर्तमान की बांधवगढ़ विधानसभा सीट शामिल हैं। इसके अलावा पांच विधानसभा सीट आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित थी जिसमें जयसिंहनगर, अनूपपुर, कोतमा, पुष्पराजगढ़ और नौरोजाबाद वर्तमान की मानपुर सीट शामिल हैं। परिसीमन के बाद उमरिया जिले की दोनों विधानसभा सीटों का नाम बदल गया। शहडोल तीन में से दो विधानसभा सीटों नाम परिवर्तित हुआ जबकि अनूपपुर जिले की तीनों सीटों का नाम यथावत रहा। परिसीमन के पहले अनूपपुर जिले में एक भी सामान्य सीट नहीं थी पर परिसीमन के बाद कोतमा सामान्य सीट हो गई और अनूपपुर तथा पुष्पराजगढ़ आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित रह गई। वर्ष 2008 के परिसीमन में तत्कालीन सोहागपुर विधायक छोटेलाल सरावगी और कलेक्टर राघवेन्द्र सिंह के झगड़े को कारण माना जाता है। छोटे लाल सरावगी दोबारा सोहागपुर सीट से चुनाव न लड़ सके इसलिए कलेक्टर राघवेन्द्र सिंह ने परिसीमन में विधानसभाओं के क्षेत्र को कुछ इस तरह से बंटवाया कि सोहागपुर की सामान्य जनसंख्या बिखर जाए। वर्ष 2008 के परिसीमन से न सिर्फ शहडोल का बल्कि उमरिया जिले का भी नक्श कुछ बिगड़ गया।

हिन्दुस्थान समाचार/ राजेश शुक्ला