इलाज न मिलने पर 7 वर्षीय आदिवासी बालक की मौत
उमरिया, 26 अगस्त (हि.स.)। डाक्टर को धरती के भगवान का दर्जा दिया गया है, जो किसी को भी काल के गाल से वापस ला सकता है। मरते हुए इंसान को जिंदगी दे सकता है और खोई हुई उम्मीदों को फिर से जगा सकता है। इन्ही खूबियों के कारण धरती पर डॉक्टर को भगवान का दर्जा दिया गया है, लेकिन जब वही डॉक्टर अपने कर्तव्यों का पालन ईमानदारी से नहीं करता है तो लोगों की जान चली जाती है।
ऐसा ही मामला उमरिया जिले के बिरसिंहपुर पाली सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से सामने आया है जहां 7 वर्षीय आदिवासी बच्चे को इलाज न मिलने के कारण मौत हो गई है। बच्चे के परिजन अस्पताल में गुहार लगाते रहे डॉक्टर साहब जल्दी आओ हमारे बच्चे की तबीयत ज्यादा खराब है ।
बच्चे के पिता केश लाल कोल ने आरोप लगाते हुए बताया कि मेरे बच्चे को सोमवार सुबह करीब 7 बजे उल्टी हुई हुई थी जिसे मैं पाली सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले कर आ गया जब यहां आया तो कोई डॉक्टर ही नहीं थे, मैं और सिस्टर दोनो डॉक्टर साहब को फोन लगाते रहे और वो नही आये, हमारा बच्चा एक-दो घंटे तक तड़पता रहा नर्स के द्वारा चेकअप किया गया और बार-बार हमें बोला जा रहा था कि डॉक्टर आ रहे हैं। फिर 1- 2 घंटे बाद दूसरे डॉक्टर आये चेकअप किये और कहे कि बच्चा नही रहा ।
वहीं बच्चे के पाली निवासी मौसा शिव कुमार कोल ने आरोप लगते हुए बताया कि बच्चे की तबीयत खराब थी जिसे इलाज के लिए पाली सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लाए लेकिन जब यहां हम आए तो यहां कोई भी डॉक्टर नहीं था नर्स इलाज करती रही हम अस्पताल में गुहार लगाते रहे कि डॉक्टर साहब जल्दी आ जाएं लेकिन डेढ़ से दो घंटे तक कोई डॉक्टर नहीं पहुंचे जिससे बच्चे की मौत हो गई। हम इस पर कार्रवाई चाहते हैं ताकि किसी दूसरे बच्चे के साथ ऐसा न होने पाये।
वहीं डियूटी डॉक्टर नितेश कुमार जोशी ने सफाई देते हुए बताया कि बच्चे की मौत खून के कमी के कारण मौत हुई है एनीमिया का सीरियस मरीज था 10:45 में बच्चा आया था जब आया था तो वह ब्रॉड डेड था हमने परिजन को उसी समय बता दिया था कि खून की कमी के कारण आपके बच्चे की मौत हुई है। डॉक्टर जैन साहब की ड्यूटी उनके न रहने पर में संभाल रहा हूं मै ऑन कॉल हूं जैसे ही नर्स का कॉल आया में तुरंत अस्पताल पहुंच गया । परिजन ने जो आरोप लगाए हैं वो गलत है।
कहते हैं प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नही होती है अब आप इस फोटो को देखिए इसमें जो डॉक्टर सुमित साकेत बच्चे का चेकअप कर रहे हैं, वो डियूटी में न होते हुए भी मानवता दिखाते हुए बच्चे को देख रहे हैं लेकिन तब तक देर हो चुकी थी, उनने साफ कहा कि नितेश सर की डियूटी है।
अब सवाल यह है कि आदिवासी हितैषी सरकार के साथ आदिवासी ब्लाक, आदिवासी विधायक होने के बाद पीड़ित भी आदिवासी और उस गरीब की यह हालत की त्योहार के दिन ही उसके हृदय का टुकड़ा उसकी आंख के सामने डॉक्टर के लापरवाही की भेंट चढ़ गया और डॉक्टर अपनी सफाई देकर पीड़ित को ही दोषी करार दे रहे हैं, और जिला प्रशासन एवं अस्पताल प्रशासन भी आंख में पट्टी बांध धृतराष्ट्र की भूमिका का बाखूबी निर्वहन कर रहा है।
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हिन्दुस्थान समाचार / सुरेन्द्र त्रिपाठी / राजू विश्वकर्मा