खूंटी में धूमधाम से मनाया गया ईद उल अजहा, पढ़ी गई विशेष नमाज, दी गई कुर्बानी
खूंटी, 17 जून (हि.स.)। जिला मुख्यालय खूंटी सहित जिले के सभी प्रखंडों और ग्रामीण इलाको में त्याग, बलिदान और प्रेम का त्योहार ईद उल अजहा सोमवार को आपसी भाईचारा के साथ सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में मनाया गया।
मौके पर जिला मुख्यालय के कर्रा रोड स्थित जामा मस्जिद में सुबह दो पालियों में, जबकि पाशा कॉलोनी स्थित मस्जिद ए जोहरा और जन्नत नगर स्थित मदीना मस्जिद तथा कौसर मस्जिद में सुबह एक-एक पाली में ईद उल अजहा की विशेष नमाज अदा की गई। इस दौरान नमाजियों ने खूंटी सहित देश में खुशहाली और अमन चौन की दुआ मांगी गई।
नमाज के बाद लोग कब्रिस्तान गए जहां अपने पुरखों और सगे संबंधियों के कब्र पर फातिहा पढ़ा गया। फिर कुर्बानी की रस्म अदा की गई। जामा मस्जिद के इमाम मोहम्मद मोहिबुल्लाह ने बताया कि बकरीद त्यौहार का मुस्लिम धर्म में बहुत महत्व है। इस त्यौहार को ईद उल अजहा या कुर्बानी का त्यौहार भी कहा जाता है। ईद उल अजहा का अर्थ त्याग वाली ईद है इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग ईदगाह और मस्जिदों में जमात के साथ विशेष नमाज अदा करते हैं। इस्लाम धर्म की मान्यता के अनुसार पैगंबर हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने कुर्बानी देने की प्रथा की शुरुआत की थी तभी से इस परंपरा को निभाया जा रहा है।
यह पर्व मुस्लिमों के लिए बहुत खास है। इस पर्व से जुड़ी कई मान्यताएं भी है। इस्लाम के अनुसार हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम अल्लाह के पैगंबर थे। ऐसा कहा जाता है कि एक बार अल्लाह ने हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम से अपने सबसे प्यारी चीज को कुर्बान करने का हुक्म दिया पैगंबर साहब को अपना एकलौता बेटा इस्माइल सबसे अधिक प्रिय था खुदा के हुक्म के अनुसार उन्होंने अपने प्रिय इस्माइल को कुर्बान करने का मन बना लिया। इस बात से इस्माइल भी खुश थे कि वह अल्लाह की राह पर कुर्बान होगा। जब हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम अपने बेटे इस्माइल अलैहिस्सलाम को कुर्बानी देने लगे तो उसकी जगह एक दुंबा कुर्बान हो गया। इस तरह इस्माइल बच गए तभी से हर साल पैगंबर साहब द्वारा दी गई कुर्बानी की याद में बकरीद मनाई जाती है।
इस्लाम के अनुसार जिस व्यक्ति के पास पैसा ना हो या उस पर किसी तरह का कोई कर्ज हो तो वह कुर्बानी नहीं दे सकता। कुर्बानी देने वाले पर किसी तरह का कोई कर्ज नहीं होना चाहिए, तभी उसकी कुर्बानी मानी जाती है। जिस पशु की कुर्बानी दी जा रही है वह पूरी तरह से स्वस्थ होना चाहिए। कुर्बानी के बाद मांस के तीन हिस्से करने जरूरी होते हैं। इनमें से एक हिस्सा खुद के इस्तेमाल के लिए रखा जाता है, दूसरा गरीबों के लिए और तीसरा संबंधियों व पड़ोसियों में बांटा जाता है।
हिन्दुस्थान समाचार/ अनिल