बिरसा कृषि विवि के फिशरीज साइंस कॉलेज में समेकित मछली पालन मॉडल की स्थापना

 


- छोटे तालाब से विभिन्न स्रोतों से प्रतिवर्ष एक लाख का लाभ प्राप्त किया जा सकता : डॉ. अखिलेश कुमार सिंह

रांची , 20 मई (हि.स.)। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) के मात्स्यिकी विज्ञान महाविद्यालय, गुमला में समन्वित मछली-बत्तख-सब्जी की खेती की इकाई स्थापित की गई है। इसमें विद्यार्थियों और किसानों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

महाविद्यालय में एक 30 डिसमिल के तालाब में मछलीपालन, बांध पर ही बत्तख पालन का घर बनाकर खाकी कैम्बल जाति का 40 बत्तख पालन किया जा रहा है तथा बांध पर ही पपीता, भिंडी, कद्दू, करेला सेम एवं मिर्च लगाए गए हैं। सब्जियों में भिंडी का उत्पादन आने लगा है। तालाब में प्रतिवर्ष प्रति हेक्टेयर 4300 किलोग्राम मछली का उत्पादन अनुमानित है।

इस संबंध में सोमवार को मात्स्यिकी महाविद्यालय के एसोसिएट डीन डॉ अखिलेश कुमार सिंह ने बताया कि तालाब के जैविक पदार्थ युक्त पानी से सब्जियों को सिंचाई देने के कारण पौधों को अलग से खाद देने की आवश्यकता नहीं होती है। अर्थात् इस विधि में एक का बेकार अवयव दूसरे के लिए उपयोगी हो जाता है, जिससे उत्पादन लागत कम हो जाती है। उन्होंने बताया कि इस छोटे तालाब (30 डिसमिल) से विभिन्न स्रोतों द्वारा प्रतिवर्ष एक लाख रुपए से अधिक का लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि झारखंड राज्य में छोटे-छोटे तालाबों की संख्या काफी है, जिसमें मछली उत्पादन से अधिक आमदनी नहीं हो पाती है लेकिन इन्हीं तालाबों में समन्वित मछली सह बत्तख पालन एवं सब्जी की खेती की जाय तो किसानों की आमदनी काफी बढ़ जाएगी तथा उन्हें सालों भर रोजगार भी उपलब्ध होगा। इस व्यवस्था में बत्तख के मल-मूत्र से तालाब में मछलियों के लिए भोजन का निर्माण होता है, तालाब में पाए जाने वाले कीड़े-मकोड़े बत्तख का भोजन बनते हैं तथा बांध पर लगाई गई सब्जी फसल के पत्ते को भी मछलियों को खिलाया जाता है। इससे किसानों को मछली, बत्तख के अंडे, बत्तख के मांस और सब्जियों से आमदनी प्राप्त होती रहती है।

हिन्दुस्थान समाचार/वंदना/प्रभात