आईजीएमसी में मरीज से मारपीट करने वाला डॉक्टर बर्खास्त
शिमला, 24 दिसंबर (हि.स.)। हिमाचल प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (आईजीएमसी) शिमला में मरीज के साथ मारपीट के मामले में सुक्खू सरकार ने बड़ा और सख्त कदम उठाया है। पल्मोनरी मेडिसिन विभाग में तैनात सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर राघव निरुला की सेवाएं तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दी गई हैं। यह फैसला प्रारंभिक जांच, वीडियो फुटेज और तथ्यात्मक रिपोर्ट के आधार पर लिया गया है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू द्वारा पूरे मामले की रिपोर्ट तलब करने और अधिकारियों के साथ बैठक के एक दिन बाद यह कार्रवाई सामने आई है।
राज्य के निदेशक चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि आईजीएमसी की अनुशासनात्मक जांच समिति और बाद में गठित सरकारी जांच समिति की रिपोर्ट में यह सामने आया कि मरीज और डॉक्टर,ल दोनों ही इस घटना के लिए जिम्मेदार पाए गए। जांच में इसे सरकारी सेवा आचरण और रेजिडेंट डॉक्टर नीति-2025 का उल्लंघन माना गया। इसी आधार पर रेजिडेंट डॉक्टर नीति की धारा-9 के तहत डॉक्टर राघव निरुला की सीनियर रेजिडेंसी तत्काल समाप्त कर दी गई।
आदेश के अनुसार 22 दिसंबर को आईजीएमसी प्रशासन से प्राप्त प्रारंभिक रिपोर्ट में यह स्पष्ट हुआ था कि 36 वर्षीय मरीज अर्जुन और डॉक्टर राघव निरुला के बीच अस्पताल परिसर में हाथापाई हुई। इसके बाद मरीज के परिजनों ने डॉक्टर के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई, जिस पर पुलिस जांच जारी है। इसी दिन डॉक्टर को पहले निलंबित किया गया था। सरकार ने 23 दिसंबर को एक स्वतंत्र जांच समिति गठित कर 72 घंटे के भीतर रिपोर्ट मांगी थी, जो 24 दिसंबर को सौंप दी गई। रिपोर्ट के अध्ययन के बाद डॉक्टर को सेवा से हटाने का फैसला लिया गया।
इस पूरे मामले की शुरुआत 22 दिसंबर को हुई जब चौपाल उपमंडल के कुपवी क्षेत्र के निवासी अर्जुन पंवार आईजीएमसी में जांच के लिए पहुंचे थे। जांच के बाद उन्हें कुछ देर आराम करने की सलाह दी गई थी। आरोप है कि सांस लेने में तकलीफ होने पर वह पास के एक वार्ड में खाली बेड पर लेट गए। इसी दौरान वहां पहुंचे डॉक्टर ने उन्हें वार्ड में लेटे रहने पर टोका। इसके बाद कहासुनी बढ़ी और मारपीट हो गई। घटना का वीडियो मौके पर मौजूद लोगों ने रिकॉर्ड कर लिया, जो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ।
वीडियो वायरल होते ही आईजीएमसी में तनाव का माहौल बन गया। मरीज के परिजन और स्थानीय लोग अस्पताल पहुंचे और आरोपी डॉक्टर के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर प्रदर्शन किया। मुख्यमंत्री सुक्खू ने मामले को गंभीरता से लेते हुए अधिकारियों की बैठक बुलाई और पूरी रिपोर्ट तलब की। इसके बाद ही सरकार ने यह कड़ा फैसला लिया।
इससे पहले रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन और स्टेट एसोसिएशन ऑफ मेडिकल एंड डेंटल कॉलेज टीचर (SAMDCOT) दोनों ही आरोपी डॉक्टर के समर्थन में सामने आ गए हैं। रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन के अध्यक्ष सोहेल शर्मा का कहना है कि वायरल वीडियो अधूरा है और घटना को एकतरफा दिखाया गया। उनके अनुसार मरीज और उसके साथ मौजूद लोगों ने पहले डॉक्टर के साथ बदतमीजी और हाथापाई की, जिसके बाद स्थिति बिगड़ी। एसोसिएशन ने बिना निष्पक्ष और विस्तृत जांच के की गई कार्रवाई को अनुचित बताया है।
वहीं, SAMDCOT ने भी बयान जारी कर कहा है कि सोशल मीडिया पर डॉक्टरों को बदनाम किया जा रहा है। संगठन का आरोप है कि पल्मोनरी मेडिसिन वार्ड को तीन घंटे से ज्यादा समय तक भीड़ ने घेर कर रखा, नारेबाजी हुई और डॉक्टरों को धमकियां दी गईं, जिससे अन्य मरीजों की इलाज व्यवस्था प्रभावित हुई। संगठन ने मांग की है कि अस्पताल में भीड़ को उकसाने वालों और कथित राजनीतिक भाषण देने वालों के खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई हो, अन्यथा प्रदेशव्यापी आंदोलन किया जाएगा।
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हिन्दुस्थान समाचार / उज्जवल शर्मा