सतलुज घाटी पर डॉ. हिमेंद्र बाली की दो पुस्तकों का हुआ विमोचन
मंडी, 12 अक्टूबर (हि.स.)। सतलुज घाटी के इतिहास एवम् संस्कृति पर डॉ. हिमेंद्र बाली द्वारा लिखित दो पुस्तकें सतलुज घाटी की सांस्कृतिक परंपराएं और सतलुज घाटी का सांस्कृतिक वैभव का हाल ही में विमोचन किया गया। सुकेत संस्कृति साहित्य एवम् जनकल्याण मंच द्वारा आयोजित पुस्तक लोकार्पण समारोह में हिमालयी संस्कृति के प्रतिष्ठित विद्वानों ने भाग लिया।
डॉ. हिमेंद्र बाली पश्चिमी हिमालयी संस्कृति,कला एवम् लोकपरंपराओं पर पिछले साढ़े तीन दशक से मौलिक शोध कार्य में निरंतर जुड़े रहे हैं। पुस्तकों के लोकार्पण समारोह का आरंभ मां सरस्वतीवंदन व दीप प्रज्जवलन के साथ हुआ। तदोपरान्त डॉ. हिमेंद्र बाली ने अपनी दोनों पुस्तकों का संक्षिप्त और सारगर्भित परिचय विद्वानों को दिया।
उन्होंने सतलुज नदी के वैदिक महत्व को रेखांकित करते हए उन्होने कहा कि लोकाख्यान में इस नदी घाटी में यह नदी गंगा नदी की तरह पवित्र और तापों को हरण करने वाली है। इस सदानीरा नीलवर्णा व वेगवती नदी का उद्गम कैलाश मानसरोवर के समीप राक्सताल से हुआ है और यह नदी पौराणिक नगर शौणितपुर सराहन रामपुर बुशहर, महाभारतकालीन राज्य कुलिंद, सुकुट और चंदेल वंशजों के क्षेत्र कहलूर राज्य से होकर गुजर कर यहां की संस्कृति को प्रभावित करती आई है। सतलुज घाटी क्षेत्र में आदिकाल में नागों की सुदृढ़ सत्ता रही है।
ऋग्वैदिक काल में पश्चिमी हिमालय में आर्यों के आगमन से यहां के शक्तिशाली नागों का उनके साथ लंबा संघर्ष हुआ। सतलुज व गिरि क्षेत्र के अंतर्गत श्रीपटल निरमंड, सुकेत, बड़ागांव शांगरी और सिरमौर क्षेत्र में आज भी बूढ़ी दिवाली के अवसर पर नाग-आर्य संघर्ष की घटना को आनुष्ठानिक रूप से निरूपित किया जाताहै।
डॉ. हिमेंद्र बाली ने कहा कि सतलुज घाटी में सृष्टि के आरंभ से ही नाग, शैव, शाक्त, वैष्णव, सौर एवम् गाणपत्य मत प्रचलित रहे हैं। यही कारण है कि यहां देव समुदाय में पंचदेव पूजा के दर्शन होते हैं और मंदिरों के कलात्मक स्वरूप में मतों का अंकन उत्कीर्णत्व व विग्रहों में देखा जा सकता है।
हिमाचल प्रदेश कला भाषा संस्कृति अकादमी के पूर्व सचिव डॉ. कर्म सिंह ने कहा कि डॉ. हिमेंद्र बाली ने क्षेत्र के इतिहास व परंपराओं पर मौलिक व प्रमाणिक कार्य किया है जो शोधार्थियोंएपाठकों व जिज्ञासुओं के लिये बहुपयोगी सिद्ध होगा। हमें इस प्रकार के प्रयासों से प्रेरित होकर लोक संस्कृति के संवद्र्धन व संरक्षण के लिये सदैव प्रयासरत रहना चाहिए।
समारोह के अध्यक्ष व नैरी शोध संस्थान के निदेशक डॉ. चेतराम गर्ग ने कहा कि आज इतिहास को भारतीय परिप्रेक्ष्य में प्रमाणिक साक्ष्यों के आधार पर लिखा जाना चाहिए। डॉ. हिमेन्द्र बाली ने सतलुज घाटी के सांस्कृतिक इतिहास पर शोधपरक पुस्तकों को लेखनीबद्ध कर यहां के ऐतिहासिक व सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को पाठकों को सुलभ कर साहसिक कार्य किया है। पुस्तक लोकार्पण के इस समारोह का मंच संचालन हिमालयन डिजिटल मीडिया के प्रधान संपादक हितेंद्र शर्मा ने किया।
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हिन्दुस्थान समाचार / सुनील शुक्ला