हिसार: अश्वगंधा की खेती से स्वास्थ्य लाभ एवं उद्यमिता की अपार संभावनाएं: कुलपति कम्बोज
एचएयू में अश्वगंधा अभियान विषय पर कार्यशाला आयोजित
हिसार, 11 मार्च (हि.स.)। अश्वगंधा प्रकृति का बहुमूल्य उपहार है। शक्तिवर्धक एवं रोग प्रतिरोधी क्षमता जैसे विलक्षण गुणों से भरपूर होने के कारण इसे ‘शाही जड़ी बूटी’ की संज्ञा भी दी गई है। आधुनिक युग में इस औषधीय पौधे की बढ़ती मांग को देखते हुए वैज्ञानिकों को अश्वंगधा पर अधिक से अधिक शोध कर इसकी नई किस्में इजाद करें। साथ ही किसानों को अश्वगंधा की खेती कर दूसरों को भी इसके लिए जागरूक करने की आवश्यकता है। यह बात हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कम्बोज ने कही। वे सोमवार को विश्वविद्यालय के कृषि महाविद्यालय में अश्वगंधा अभियान विषय पर आयोजित कार्यशाला संबोधित कर रहे थे।
यह कार्यशाला भारत सरकार के आयुष मंत्रालय में राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड के सौजन्य से विश्वविद्यालय के अनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग के औषधीय, संगध एवं क्षमतावान फसल अनुभाग द्वारा आयोजित की गई थी। प्रो. बीआर कम्बोज ने कहा कि यूनानी व आयुर्वेद पद्धति में औषधीय पौधों का अति महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने अश्वंगधा की विशेषताएं बताते हुए कहा कि इस जड़ी बूटी का इस्तेमाल एंटीऑक्सीडेंट, चिंतानाशक, याददाश्त बढ़ाने वाला, कैंसर रोधी, सूजन रोधी सहित अन्य बीमारियों से राहत पाने के लिए किया जाता है। साथ ही यौन रोग के इलाज व शरीर को बलवर्धक बनाने में भी अश्वगंधा का प्रयोग किया जाता है। उन्होंने कहा कि देश की 65 प्रतिशत आबादी प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल व आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आयुर्वेद व औषधीय जड़ी-बूटियों का उपयोग करती है। मुख्यातिथि ने देश में अश्वगंधा के उत्पादन की स्थिति को बताते हुए कहा कि वर्तमान समय में अश्वगंधा की जड़ों का उत्पादन करीब 1123.6 टन है, जबकि आवश्यकता 3222.4 टन है। इसलिए इसमें उद्यमिता की अपार संभावनाएं है।
उन्होंने कहा कि अश्वगंधा की विशेषताओं व बढ़ती मांग को देखते हुए विश्वविद्यालय ने आयुष विश्वविद्यालय के साथ अनुबंध किया है ताकि विद्यार्थियों को इस क्षेत्र में अपना करियर संवारने के लिए बेहतर विकल्प मिल सकें। मुख्यातिथि ने कहा कि आगामी सीजन में विश्वविद्यालय द्वारा अश्वगंधा की खेती को बढ़ावा देने के लिए अश्वगंधा की उन्नत किस्मों के दो लाख पौधे किसानों को उपलब्ध करवाएं जाएंगे। साथ ही वर्तमान समय में पाठ्यक्रम के अंदर अश्वगंधा के गुणों को शामिल करना चाहिए।
हिन्दुस्थान समाचार/राजेश्वर/संजीव