नारनौलः अमृतकाल विमर्श विकसित भारत के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण प्रो. हरमोहिंदर सिंह बेदी

 


नारनौल, 27 अक्टूबर (हि.स.)। पुरातन भारतीय ज्ञान परंपरा सदैव ही समूचे विश्व के समक्ष भारतीयों के ज्ञान का परिचायक रही है। पुरातन काल में ऐसे अनेकों उदाहरण उपलब्ध हैं, जिनसे यह साबित होता है कि भारत के ज्ञान-विज्ञान के प्रभाव विश्व के विकास में रहा है। आज हम अमृतकाल विमर्श कर रहे हैं। आज की युवा पीढ़ी के लिए जरूरी है कि वह इतिहास को समझते हुए भविष्य के भारत के निर्माण में योगदान दें। यह बात पद्मश्री प्रो. हरमोहिंदर सिंह बेदी ने शुक्रवार को हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय महेंद्रगढ़ में अमृतकाल विमर्श विकसित भारत एट 2047 विषय पर केंद्रित व्याख्यान में मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किए। इस मौके पर हकेवि के कुलपति प्रो. टंकेश्वर कुमार भी मौजूद रहे।

हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलाधिपति पद्मश्री प्रोफेसर हरमोहिंदर सिंह बेदी ने अपने संबोधन में अनेकों उदाहरणों के माध्यम से भारत और उसकी ज्ञान परंपरा के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आज भारत अपनी शिक्षा नीति के साथ विकास के उस पथ पर अग्रसर है जो कि विकसित भारत के स्वप्न को साकार करने जा रहा है। उन्होंने स्वभाषा में चिंतन के महत्त्व का उल्लेख करते हुए कहा कि शिक्षा नीति में विशेष रूप से मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने का उद्देश्य इसी मौलिक चिंतन को बल प्रदान करना है।

प्रो. बेदी ने भारतीय वेदों व पुराणों का उल्लेख करते हुए कहा कि पुरातन काल में विदेशी विशेष रूप से इनके अध्ययन हेतु भारत आते थे और उनसे अर्जित ज्ञान से विश्व स्तर पर पहचान बनाते। प्रो. बेदी ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि विकसित भारत के लक्ष्य को पाने हेतु जरूरी है कि हम भारतीय संस्कृति और उससे सबंधित ग्रंथों का अध्ययन करें और नई ऊर्जा व विश्वास के साथ भारत निर्माण की दिशा में अग्रसर हों। इस अवसर पर प्रो. हरमोहिंदर सिंह बेदी की पुस्तक का विमोचन भी किया गया।

हिन्दुस्थान समाचार/श्याम/संजीव