जींद: गुरू हरगोबिंद सिंह के प्रकाशोत्सव पर्व पर हुआ गुरमत समागम
जींद, 23 जून (हि.स.)। मीरी पीरी के बादशाह छठी पातशाही गुरू हरगोबिंद सिंह के प्रकाश पर्व को शहर के सभी गुरुद्वारों में रविवार को श्रद्धा व धूमधाम से मनाया गया। गुरुघर के प्रवक्ता बलविंदर सिंह के अनुसार प्रकाश पर्व को लेकर ऐतिहासिक गुरुद्वारा गुरु तेग बहादुर साहिब एवं गुरुद्वारा सिंह सभा रेलवे जंक्शन तथा श्री गुरु सिंह सभा भारत सिनेमा रोड में गुरमत समागम का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम में सुबह साढ़े दस बजे से बारह बजे तक सुखमनी सेवा सोसायटी के सदस्यों द्वारा सुखमनी साहिब का जाप किया गया। इसके बाद गुरुद्वारा साहिब के रागी भाई गुरदित्त सिंह व रिषिपाल सिंह, भाई जसवंत सिंह तथा संतोख सिंह के जत्थे द्वारा गुरबाणी के शब्द गायन किए गए। तदोपरांत गुरु का अटूट लंगर संगतों में बरताया गया।
गुरुघर के प्रवक्ता बलविंदर सिंह ने कहा कि इस प्रकाश पर्व की खुशी में ऐतिहासिक गुरुद्वारा गुरु तेग बहादुर साहिब में शाम को सात बजे से लेकर नौ बजे तक कीर्तन दरबार सजाया गया। जिसमें गुरुघर के रागी भाई जसबीर सिंह रमदासिया व भाई करमजीत सिंह के रागी जत्थे एवं दरबार साहिब अमृतसर से आए भाई जलविंदर सिंह के रागी जत्थे द्वारा गुरबाणी गायन किया गया।
गुरुद्वारा साहिब के हैडग्रंथी एवं प्रसिद्ध कथा वाचक गुरविंदर सिंह रत्तक ने अपने प्रवचनों में बताया कि गुरु हरगोबिंद सिंह ने गुरु गद्दी संभालने के बाद दो तलवारें धारण की थी। इन तलवारों को मीरी-पीरी का नाम दिया गया। मीरी नामक तलवार भौतिक संसार पर विजय पाने यानि युद्ध का प्रतीक थी, वहीं पीरी नामक तलवार आध्यात्मिक ज्ञान पर विजय पाने यानि धर्म व संस्कृति की रक्षा करने की प्रतीक थी।
इन दोनों तलवारों में से गुरू साहिब ने पीरी को श्रेष्ठ माना था। हरियाणा गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की सदस्य बीबी परमिंदर कौर ने समागम में पहुंचीं संगतों से कहा कि ढाढी वारों का प्रचलन सबसे पहले गुरु हरगोबिंद सिंह के राज में ही हुआ था। क्योंकि यह माना जाता था कि ढाढी वारें युद्ध शुरू होने से पहले सैनिकों में जोश व साहस पैदा करने का कार्य करती थी तथा आज भी ढाढी जत्थे सिख इतिहास की कुर्बानियों को अपनी वारों में पिरो कर संगतो को सुना कर निहाल करते हैं।
हिन्दुस्थान समाचार/ विजेंद्र/संजीव