सोनीपत: जीवन में सुख-दु:ख अस्थायी और इच्छाएँ अनंत हैं: डॉ मणिभद्र मुनि
सोनीपत, 6 सितंबर (हि.स.)। राष्ट्र संत, नेपाल केसरी, मानव मिलन के संस्थापक डॉ.मणिभद्र
मुनि जी महाराज ने कहा कि समय एक निरंतर चलने वाली धारा की तरह, हमारे जीवन की हर एक
घटना और अनुभव को अपनी लय में समेटे रहता है। यह शक्ति हमें सुख और दुख के विभिन्न
भावनात्मक उथल-पुथल का अनुभव कराती है।
डॉ श्री मणिभद्र मुनि जी महाराज शुक्रवार को सेक्टर
15 स्थित जैन स्थानक में उपस्थित भक्तजनों को चातुर्मास के दौरान संबोधित कर रहे थे।
डॉ मणिभद्र मुनि जी महाराज ने कहा कि जब हम सुखद समय में होते हैं, तो हमें लगता है
कि यह क्षण कभी खत्म नहीं होगा। लेकिन जैसे-जैसे समय चलता है, यह सुख भी क्षणिक हो
जाता है। यही स्थिति दुख की होती है; जब हम दुखी होते हैं, तो हमें लगता है कि यह स्थिति
कभी समाप्त नहीं होगी, लेकिन समय के साथ यह भी बदल जाता है। समय की यह निरंतरता हमें
सिखाती है कि न तो सुख स्थिर होता है और न ही दुख।
उन्होने कहा सुख और दुख हमारे जीवन के दो विरोधाभासी
पक्ष हैं।
सुख के क्षण हमें खुशी और संतोष प्रदान करते हैं, जबकि दुख के क्षण हमें
दर्द और दुःख का अनुभव कराते हैं। इन दोनों की अस्थिरता ही जीवन को चुनौतीपूर्ण और
विविधतापूर्ण बनाती है। यह चक्र कभी समाप्त नहीं होता, लगातार बढ़ती हुई इच्छाएं न
केवल हमें संतोष की कमी का अनुभव कराती हैं, बल्कि हमारी व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन
में भी समस्याएं उत्पन्न करती हैं। समय की निरंतरता, सुख और दुख की अस्थिरता, और बढ़ती
हुई इच्छाएं जीवन के महत्वपूर्ण पहलू हैं जो हमारे अनुभवों को आकार देते हैं। वास्तविकता
को स्वीकारना और संतोष की खोज करना हमें मानसिक शांति और खुशी की ओर ले जा सकता है।
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हिन्दुस्थान समाचार / नरेंद्र परवाना