गुरुग्राम: भारत की जनता व चिकित्सकों में दुर्लभ बीमारियों के प्रति जागरुकता कम: डा. स्वस्तिचरण
-स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ
गुरुग्राम, 24 अगस्त (हि.स.)। भारत में दुर्लभ बीमारियों के बारे में जागरुकता कम है। यहां तक कि चिकित्सकों में भी। यदि हम स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (एसएमए) की चुनौती को हल करने में सक्षम होते हैं तो हम अधिकांश अन्य दुर्लभ बीमारियों का भी सामना कर सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि हाल के वर्षों में नीति निर्माताओं का ध्यान दुर्लभ बीमारियों पर अधिक केंद्रित हुआ है। यह बात स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के महानिदेशालय व डीजीएचएस के अतिरिक्त उप-निदेशक जनरल डॉ. एल. स्वस्तिचरण ने कही।
डा. स्वस्तिचरण शनिवार को गुरुग्राम में स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के पहले दिन बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। इस सम्मेलन में प्रमुख डॉक्टरों, शोधकर्ताओं, थेरेपिस्ट्स के साथ-साथ भारत भर से 30 से अधिक एसएमए रोगी और उनके माता-पिता ने भी शिरकत की। सेमीनार का आयोजन क्योर एसएमए फाउंडेशन ऑफ इंडिया द्वारा किया गया। डा. स्वस्तिचरण ने कहा कि हमारे पास दुर्लभ बीमारियों के लिए एक राष्ट्रीय नीति है। इसमें नई दुर्लभ बीमारियों को शामिल करने का तंत्र भी है, जिसमें अन्य बीमारियां शामिल हैं। जिनका फिलहाल किसी कार्यक्रम द्वारा देखभाल नहीं की जा रही है। हमारी नीति के तहत दुर्लभ बीमारियों के लिए प्रति रोगी 50 लाख रुपये का प्रावधान है, लेकिन एसएमए जैसी स्थितियों के लिए यह राशि भी पर्याप्त नहीं है। उन्होंने कहा कि हम किसी को पीछे नहीं छोडऩा चाहते।
क्योर एसएमए फाउंडेशन ऑफ इंडिया की सह-संस्थापक और निदेशक फैमिली सपोर्ट एंड इवेंट्स मौमिता घोष ने कहा कि एसएमए एक दुर्लभ और अनुवांशिक रूप से विरासत में मिली न्यूरो मस्कुलर बीमारी है। यह रीढ़ की हड्डी में मोटर तंत्रिका कोशिकाओं को प्रभावित करके लोगों की शारीरिक शक्ति छीन लेती है। जिससे चलने, खाने या सांस लेने की क्षमता चली जाती है। यह शिशुओं के लिए मौत का सबसे बड़ा आनुवंशिक कारण है। हर साल भारत में लगभग 4000 बच्चे एसएमए के साथ पैदा होते हैं। एसएमए आर्ट कॉन 2024 का उद्देश्य एसएमए पर ज्ञान बढ़ाना, प्रारंभिक निदान और प्रारंभिक हस्तक्षेप का महत्व, बहु-विषयक सहायक देखभाल और प्रबंधन का महत्व, उपलब्ध उपचारों की जानकारी और समझ, स्वदेशी शोध का महत्व और स्रू्र और अन्य दुर्लभ बीमारियों के लिए एक स्थायी स्वास्थ्य देखभाल पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिए नवीन समाधानों पर मंथन करना है।
इस अवसर पर डॉ. देबाशीष चौधरी, निदेशक, प्रोफेसर और प्रमुख, न्यूरोलॉजी विभाग, जीबी पंत इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च नई दिल्ली, डॉ. शेफाली गुलाटी प्रमुख, पीडियाट्रिक न्यूरोलॉजी एम्स दिल्ली, डॉ. रत्ना दुआ पुरी, चेयरपर्सन, इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स, सर गंगाराम अस्पताल नई दिल्ली, इप्सिता मित्रा, स्वर्णेंदु सिंघा समेत कई अतिथि मौजूद रहे।
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हिन्दुस्थान समाचार / ईश्वर हरियाणा / SANJEEV SHARMA