महाज्ञानी ऋषि अष्टावक्र संस्थान के विद्यार्थी बोले- सांकेतिक भाषा में भी बननी चाहिए फिल्में
चंडीगढ़, 24 फरवरी (हि.स.)। रिंकी, मीनाक्षी और आदित्य जैसे 47 मूक बधिर छात्र-छात्राएं हैं, जिन्होंने एक साथ सांकेतिक भाषा में बताया कि भारत में अनेक भाषाओं में फिल्में बन रही हैं। उनमें कई तरह के प्रयोग हो रहे हैं। वह चाहते हैं कि मूकबधिर लोगों के लिए भी फिल्में बनें और उसमें सांकेतिक भाषा का इस्तेमाल हो। शनिवार को भारतीय चित्र साधना के अखिल भारतीय पांचवें चित्र भारती फिल्म फेस्टिवल जहां अनेक लोग हरियाणा के पंचकूला और दूसरे राज्यों से पहुंचे, वहीं महाज्ञानी ऋषि अष्टावक्र केंद्र राजकीय बहुतकनीकी संस्था पंचकूला के 47 छात्र छात्राओं ने इसका अवलोकन किया।
इस मौके पर इन विद्यार्थियों ने कई विषयों के प्रति जिज्ञासा व्यक्त की और सुझाव भी दिए। संस्थान की शिक्षिका रजनी आनंद, राजकुमार पटेल, जितेंद्र पूनिया, नम्रता, रिया और प्रदीप ने विद्यार्थियों द्वारा सांकेतिक भाषा के किए गए सवाल जवाब की मध्यस्थता की। उन्होंने बताया कि सभी विद्यार्थियों ने पूरे फिल्म फेस्टिवल का अवलोकन करने के साथ फिल्म के क्षेत्र की अलग अलग विधाओं को लेकर चर्चा भी की। इस अवसर पांचवें फिल्म फेस्टिवल आयोजन समिति के कार्यकारी अध्यक्ष राजेश कुमार ने मूक विद्यार्थियों से जब आयोजन के बारे में जानकारी ली तो सभी ने सांकेतिक भाषा में इसका जवाब दिया। उन्होंने बताया कि हमारा पहला इस तरह का आयोजन है, जोकि उनके जीवन के लिए काफी प्रभावशाली रहा। छात्रा रिंकी ने बताया कि उन्होंने फिल्म फेस्टिवल में स्क्रिनिंग की गई कई फिल्मों को देखा और यह देखकर उन्हें भी प्रेरणा मिली।
छात्रा मीनाक्षी ने कहा कि मेरी रुचि लोकनृत्य में है। मैं चाहूंगी की इसे अच्छी तरह से सीख कर कोरियोग्राफर बन सकूं। आदित्य आनंद ने बताया कि भारत के विकास में जिस तरह से सामान्य लोग अपना अभिनय और फिल्मों से जुड़ी अन्य विधाओं में अपनी प्रतिभा दिखा रहे हैं, उसी तरह हमें भी इसका मौका मिलना चाहिए, ताकि हम भी अपनी प्रतिभा को समाज के समक्ष ला सकें और भारत के सर्वांगीण विकास में अपना योगदान दे सकें।
हिन्दुस्थान समाचार/संजीव/पवन