सूरजकुंड मेला: 200 साल पुरानी परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं असगर लोहार
फरीदाबाद, 14 फरवरी (हि.स.)। सूरजकुंड में आयोजित 37वें अंतरराष्ट्रीय मेले में आए लोग मेले की रौनक को चार चांद लगाने का काम करते हैं। ऐसा ही एक व्यक्ति जो की गुजरात के कच्छ से आया है। जिसका नाम असगर लोहार है। वह सूरजकुंड मेले में अपने हाथों से बनी कॉपर बेल लेकर पहुंचा है।
असगर लोहार के मुताबिक उनके घर के आर्थिक हालात सही नहीं थे। किसी तरह से वह कक्षा नौ में पहुंचे। उन्होंने देखा कि जब उसके पिताजी अकेले कमाने वाले हैं और 10 लोग खाने वाले हैं, तो उन्होंने भी अपने पिताजी का कार्य करना शुरू कर दिया। उन्होंने अपने पिताजी से कॉपर बेल बनाना सीखी। इसके बाद 2013 में उन्हें स्टेट अवार्ड मिला। उन्होंने बताया कि वह सूरजकुंड मेले में पहली बार आए हैं। वैसे तो वह कई जगह जा चुके हैं और इस बेल को बनाने के लिए ट्रेनिंग भी दे चुके हैं। निफ्ट, एनआईटी और अन्य कॉलेज में जाकर इसको बनाने की ट्रेनिंग देकर आ चुके हैं। उन्होंने बताया कि यह प्रथा 200 साल पुरानी है।
200 साल पहले पीर साहब ने उनके परदादा को सिखाई थी और उनके परदादा ने दादा को और उनके दादा ने पापा को सिखाई। जिसके बाद आज उन्होंने अपने पापा से सीख कर यह प्रथा आगे बढ़ाई। वह सूरजकुंड में मेटल से बना एक इंस्ट्रूमेंट लेकर पहुंचे हैं, जिसका नाम सारेगामा पहिया रखा गया है, जिसकी कीमत 10000 रुपये निर्धारित की गई है। उन्होंने बताया कि 50 से ज्यादा लोग उनके पास काम करते हैं और 25 से 30 परिवार को उनके काम से खाना मिलता है। उनका कहना है कि सूरजकुंड मेले में उनकी ढाई लाख से ज्यादा की बिक्री हो चुकी है। इस मेले में आकर वह बेहद खुश हैं। वह अगली बार भी इस मेले में आएंगे।
हिन्दुस्थान समाचार/मनोज/सुमन/संजीव