सोनीपत: सुकून से भरपूर जीवन के लिए परमात्मा के प्रति कृतज्ञ रहें: सुदीक्षा जी महाराज
वसुधैव कुटुम्बकम् का अनुपम दृश्य - 76वां निरंकारी सन्त समागम
सोनीपत, 30 अक्टूबर (हि.स.)। संतों की सिखलाई है कि विनम्रता को अपनाएं तो सुकून मिलेगा। प्रभु से जुड़ें तो मन में सुकून मिलेगा, हर हाल में प्रभु की रजा को माने तो सुकून मिलेगा, मन मर्जी को त्यागे तो सुकून मिलेगा। हर परिस्थिति परमात्मा का प्रसाद है। इस परमात्मा के साथ जुड़कर हर समय शुकराने में रहेंगे तो सुकून मिलेगा। ब्रह्म ज्ञान पर जितना मन टिकेगा उतने ही सुकून में जिएंगे। सुकून से भरपूर जीवन के लिए परमात्मा के प्रति कृतज्ञ रहें। यह बात निरंकारी सन्त समागम में निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज रविवार की रात को मंगलकारी प्रवचनों की रसधारा प्रवाहित कर रहे थे।
सतगुरु माता जी ने कहा कि कोई चतुर चालाकियां भक्ति में काम नहीं आती, सिर्फ प्यार और प्रेम ही है, भक्ति कोई सौदेबाजी नहीं है। इसमें कोई शर्त नहीं होती है। जितना ज्यादा समर्पित संतों की कृपा से हमें सीख मिलती है वह सुकून और शंाति देती है। जब आंधी तूफान आते हैं तो नरम घास जमीन पर लेट जाती है लेकिन बड़े पेड पौधे चरमरा कर टूट जाते हैं। इसी तरह है चतुराई गुमराह करती है जबकि समर्पण मानव जीवन को बुलंदी देता हैं, शांति देता है। परमात्मा में प्रेम है, भक्ति है, प्रेम ही बांटते जाएं, मन में सबर सुकून, शुकराने के साथ चलते चलें। कुछ भी हासिल हो जाए, सुकून नहीं तो बात नहीं बनेगी।
इससे पूर्व निरंकारी राजपिता जी ने कहा कि सत्गुरु का एक एक भक्त अपने आप में सुकून की परिभाषा होता है। उसका आचरण ही संसार में सुकून पहुंचाने का कार्य करता है। शांति सुकून का सन्देश हमें निरंतर दिया जा रहा है। लेकिन हमारी धारणा बन चुकी है कि सुकून जैसी कोई वस्तु है ही नहीं। मन में इस तरह की भावना आती है, उसके अभाव की अनुभूति नहीं रह जाती है। हम बहुमूल्य दात से प्रायः वंचित रह जाते हैं जिसके लिए हमें यह मनुष्य तन मिला है। सुकून की प्राप्ति सत्गुरु के द्वारा ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर परमसत्य के निरंतर अहसास से ही सम्भव है।इस पावन सन्त समागम में सम्मिलित हुए सभी श्रद्धालुओं ने जहां समागम के हर पहलू से भरपूर आनंद प्राप्त किया वहीं सुकून भरी जिंदगी जीने का सुंदर भाव हृदय में बसाया।
हिन्दुस्थान समाचार/ नरेंद्र/संजीव