हिसार: प्राचीन राखीगढ़ी महोत्सव में सांस्कृतिक विरासत का जीवंत प्रदर्शन
स्टालों पर सजी 5000 साल पुरानी सभ्यता और पारंपरिक कला की झलक
हिसार, 27 दिसंबर (हि.स.)। ऐतिहासिक स्थल राखीगढ़ी में चल रहे वार्षिक राखीगढ़ी
महोत्सव ने इतिहास और संस्कृति प्रेमियों को मंत्रमुग्ध कर दिया है। हरियाणा सरकार
द्वारा आयोजित 'राखीगढ़ी महोत्सव-2025' के दूसरे दिन भी दर्शकों का भारी उत्साह देखने
को मिला। महोत्सव में लगाई गई विशेष स्टालों के माध्यम से 5000 साल पुरानी सिंधु-सरस्वती
सभ्यता और हरियाणा की ग्रामीण विरासत का अद्भुत संगम प्रस्तुत किया जा रहा है, जो क्षेत्र
की समृद्ध विरासत को दर्शाती हैं।
महोत्सव का उद्देश्य न केवल राखीगढ़ी के पुरातात्विक महत्व को उजागर करना है,
बल्कि स्थानीय कारीगरों और समुदायों द्वारा संरक्षित पारंपरिक कलाओं और सामग्रियों
को भी बढ़ावा देना है।
महोत्सव में आगंतुक जटिल हाथ की कढ़ाई वाले वस्त्र, ओढ़नी (दुपट्टे)
और पारंपरिक हरियाणवी पोशाकें देख सकते हैं। ये स्टाल दर्शाते हैं कि कैसे स्थानीय
बुनाई और रंगाई की तकनीकें पीढ़ियों से चली आ रही हैं। स्थानीय स्वयं सहायता समूहों
द्वारा हस्तनिर्मित वस्त्र प्रदर्शित किए जा रही हैं। मिट्टी और अन्य प्राकृतिक सामग्रियों
से बने पारंपरिक आभूषणों ने महिलाओं और कला प्रेमियों को समान रूप से आकर्षित किया
है। इन आभूषणों की डिजाइन सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली शैलियों
की याद दिलाती हैं।
कई स्टालों पर स्थानीय कुंभकारों द्वारा बनाए गए मिट्टी के बर्तन
और टेराकोटा की मूर्तियाँ प्रदर्शित हैं। ये सामग्रियाँ दैनिक जीवन में पारंपरिक तरीकों
के उपयोग को दर्शाती हैं। कुछ अनूठे स्टालों पर लकड़ी और धातु से बने पुराने कृषि उपकरण,
साथ ही पीतल और तांबे के घरेलू उपयोग के बर्तन प्रदर्शित किए गए हैं, जो आगंतुकों को
ग्रामीण हरियाणा की सरल जीवन शैली की झलक प्रदान करते हैं। उपायुक्त महेंद्र पाल ने
कहा कि ये स्टाल हमारी विरासत के संरक्षक हैं। वे न केवल स्थानीय कारीगरों को एक मंच
प्रदान करते हैं बल्कि नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जुड़ने का अवसर भी देते हैं।
एसडीएम
विकास यादव ने शनिवार काे बताया कि आगंतुक इन स्टालों पर प्रदर्शित की जा रही अद्वितीय सामग्रियों
को उत्सुकता से देख रहे हैं और कई लोग इन पारंपरिक वस्तुओं को स्मृति चिन्ह के रूप
में खरीद भी रहे हैं। राखीगढ़ी म्यूजियम में लगाई गई प्रदर्शनी में खुदाई के दौरान
प्राप्त मृदभांड (मिट्टी के बर्तन), टेराकोटा के खिलौने और अन्य वस्तुएं प्रदर्शित
की गई हैं। महोत्सव में पारंपरिक खेलों (कबड्डी, कुश्ती) और लोक नृत्यों के साथ-साथ
पारंपरिक ग्रामीण खान-पान की भी व्यवस्था की गई है, जो हड़प्पाकालीन कृषि आधारित जीवन
और आधुनिक संस्कृति के बीच निरंतरता को दर्शाता है।
हिन्दुस्थान समाचार / राजेश्वर