हरियाणा:कई जिलों के पशुओं में लंपी स्किन के मामले मिले

 


बढ़ते मामलों के दृष्टिगत सक्रिय हुए पशु चिकित्सक, जारी की एडवाइजरीहिसार, 12 दिसंबर (हि.स.)। हरियाणा के विभिन्न जिलों में पशुओं में लंपी स्किन डिजिज (एलएसडी) के मामलों में बढ़ोतरी हो रही है। इसके चलते पशु चिकित्सक सक्रिय हो गए हैं और यहां के लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय ने पशुपालकों के लिए विशेष एडवाइजरी जारी की है। पशु चिकित्सा जन स्वास्थ्य एवं महामारी विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. राजेश खुराना ने शुक्रवार काे बताया कि विशेषज्ञों की टीमें फील्ड में सक्रिय रूप से कार्य कर रही है तथा प्रभावित क्षेत्रों में पशुओं की जांच और उपचार सुनिश्चित किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि ढेलेदार त्वचा रोग एक विषाणु जनित संक्रामक रोग है, जो पॉक्स वायरस से फैलता है। विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन ने इसे नोटीफाएबल ट्रांसबाउंडरी डिजिज की श्रेणी में रखा है। यह रोग संक्रमित पशु के संपर्क में आने या मच्छर, मक्खी एवं चीचड़ जैसे कीटों द्वारा तेजी से फैलता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह जूनोटिक नहीं है, यानि मनुष्यों में नहीं फैलता। इसलिए पशुपालक घबराएं नहीं, लेकिन सावधानी अवश्य बरतें।पशु चिकित्सा रोग निदान विभाग से डॉ. ज्ञान सिंह ने बताया कि यह रोग गर्म एवं नमी वाले मौसम में अधिक फैलता है। इस बीमारी के प्रमुख लक्षणों में तेज बुखार, शरीर पर गांठें या फोड़े, आंख-नाक से पानी आना, भूख कम हो जाना, पैरों में दर्द एवं सूजन, दूध उत्पादन में कमी, गर्भपात तथा थनों में सूजन शामिल हैं। बीमारी की रुग्णता दर 10 से 20 प्रतिशत तथा मृत्यु दर लगभग 1 से 5 प्रतिशत तक देखी जा रही है।लुवास की ओर से पशुपालकों को रोग के फैलाव को रोकने के लिए कुछ उपाय बताए गए हैं। इसके तहत बीमार पशु को तुरंत अलग बाड़े में रखें, आइसोलेशन प्राथमिक उपाय है। इसी प्रकार पशुओं के लिए मच्छरदानी का उपयोग करें, बाड़े को स्वच्छ, सूखा एवं हवादार रखें, मक्खी-कीट नियंत्रण जैसे नियमित रूप से मच्छर/मक्खीरोधी रसायन छिडक़ें अथा नीम की पत्तियों और गुगल का धुआं भी अत्यंत भी प्रभावी, स्वस्थ पशुओं को फिटकरी या लाल दवा (0.1 प्रतिशत) से दिन में दो बार नहलाएं, घाव पर पानी न लगाएं और न ही उसे खुजाने दें, घाव में कीड़े आदि न पडऩे दें तथा पौष्टिक आहार और स्वच्छ पेयजल नियमित रूप से दिया जाए। इसके अलावा बीमार पशु को छूने के बाद स्वस्थ पशु के पास न जाएं, संपर्क के बाद साबुन से हाथ अच्छी तरह धोएं, बीमार पशु का उपचार केवल नजदीकी पशु चिकित्सालय/औषधालय की सलाह से करवाएं तथा घावों और जटिल लक्षणों का उपचार केवल विशेषज्ञ चिकित्सक की देखरेख में करवान सुनिश्चित किया जाए। इसी प्रकार स्वस्थ पशुओं का टीकाकरण तत्काल करवाएं और जिन पशुओं में लक्षण दिखाई दे रहे हों, उनका टीकाकरण न करवाएं। संक्रमित पशुओं को रोग समाप्त होने तक पशु मेलों या दूसरे क्षेत्रों में ले जाने पर सख्त पाबंदी है। लंपी स्किन रोग गंभीर संक्रामक रोग है, परंतु समय पर पहचान, पृथक्करण, मच्छर-नियंत्रण, स्वच्छता, पौष्टिक आहार व टीकाकरण से इसे प्रभावी रूप से नियंत्रित किया जा सकता है। पशुपालक सजग रहें, अफवाहों से बचें, तथा किसी भी संदिग्ध लक्षण पर तत्काल चिकित्सकीय सहायता लें। इस संबंध में अधिक जानकारी के लिए पशुपालक लुवास विश्वविद्यालय अथवा नजदीकी सरकारी पशु चिकित्सालय, पशु औषधालय या फील्ड पशु चिकित्सा स्टाफ से तुरंत परामर्श ले सकते हैं।

हिन्दुस्थान समाचार / राजेश्वर