स्वामीनारायण अक्षरधाम, दिल्ली में भव्य गोवर्धन पूजा सम्पन्न

 


नई दिल्ली, 13 नवंबर (हि.स.)। भारतीय सनातन संस्कृति के स्तम्भ के रूप में दिल्ली के यमुना किनारे स्थित स्वामीनारायण अक्षरधाम में अन्नकूट महोत्सव तथा गोवर्धन पूजा अत्यंत हर्षोल्लास एवं पारम्परिक विधि विधान से हुई।

मंदिर-परिसर में गोकुल ग्राम स्थित ऐतिहासिक गोवर्धन पर्वत से लाए हुए पत्थर और मृदा से एक टीले का सृजन किया गया। इसका रूप बिलकुल वास्तविक गोवर्धन पर्वत के प्रतीकरूप समान था। इस टीले के आगे श्री राधा-कृष्ण देव की मूर्तियों को स्थापित किया गया और साथ ही में गौ-माता और उनके बछड़े का बाड़ा लगाया गया। हिन्दू परंपरा में गाय को दिव्य जीव माना गया है, जो कि पवित्रता, ख़ुशहाली तथा मातृत्व की प्रतीक है। भगवान श्री कृष्ण का गाय से अनन्य स्नेह-संबंध होने के कारण उनका नाम ‘गोविंद’ पड़ा, जिसका अर्थ है “गौ-रक्षक”। यह दृश्य देखकर ऐसा लगा कि श्रीमद्भागवत के दशम स्कंध के शब्दों ने आज साकार रूप ले लिया है। अक्षरधाम के सौजन्य से भक्तों को कलियुग में आज द्वापर युग का अनुभव होने लगा।

गुरुहरि महंत स्वामीजी महाराज की आज्ञा से शुभ गोवर्धन पूजा के साथ उत्सव शुरू हुआ। श्री अक्षर पुरुषोत्तम महाराज, श्री राधा कृष्ण और गोवर्धन पर्वत की प्रतिमाएं वैदिक मंत्रों के साथ पूजित हुईं। पूजा के समापन में, पूज्य मुनिवत्सलदास स्वामीजी ने सुन्दरता से समझाया कि सभी समुदायों के बीच सामंजस्य और सम्मान हो, वैश्विक रूप से आतंकवाद को खत्म करें, और शांति का एक युग बढ़ाएं। पूज्य महंत स्वामीजी महाराज स्वस्थ रहें और मंदिर निर्माण के माध्यम से समाज को आध्यात्मिक रूप से उन्नति के मार्ग पर ले जाते रहें। ये मंदिर मानव को अध्यात्म स्व जोड़ते है। आज जहां विश्व में तनाव का माहौल है। हम प्रार्थना करते है के संसार में शांति बनी रहे । हम प्राचीन सनातन वैदिक धर्म का पालन करते हैं। आज हमने भाग लिया गया अनुष्ठान लगभग 5011 वर्ष पुराना है। हमारे शास्त्रों के अनुसार, कलियुग अभी अपने प्रारंभिक चरण में है लेकिन इसके चिंताजनक प्रभाव आज भी स्पष्ट हैं। इसलिए, हमारे त्योहार इन प्रभावों से बचाव के रूप में कार्य करते हैं। गोवर्धन पूजा का अनुष्ठान एक प्राचीन रीति है, और इस परंपरा की संरक्षण हमारी धर्म को संभालने की जिम्मेदारी है। हमें भगवान स्वामीनारायण के उपदेशों का अनुसरण करने का सौभाग्य प्राप्त है, जिन्होंने एकान्तिक धर्म की स्थापना की, जिसे उनके उत्तराधिकारियों ने आगे बढ़ाया। वर्तमान में, हम भगवान स्वामीनारायण के वर्तमान आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, महंत स्वामी महाराज के मार्गदर्शन में इस त्योहार का आयोजन कर रहे हैं।

जहाँ प्रांगण में ऐसा रमणीय दर्शन मिला, वहाँ मंदिर में मूर्तियों के समक्ष सजे अन्नकूट को देखकर अन्नपूर्णा देवी का स्मरण हो आया। मंदिर परिसर में लगभग 1221 व्यंजनों को भगवान स्वामीनारायण और उनके अनुगामियों को अर्पण किया गया था। इनमें खाद्य एवं पेय, दोनों प्रकार के भोजन थे। इनका रंगारंग अलंकरण विभिन्न पुष्पों के आकार में किया गया था। सब्ज़ियों पर मुग्धकारी चित्रकारी, फलों पर पशु-पक्षियों की सुन्दर बनावट, पके हुए मक्के के झूमर, रोटलों की भूरी पहाड़ियाँ, मिठाइयों के छोटे टापू इत्यादि देखकर भारतीय संस्कृति में भोजन और पोषण के महत्व का विचार आया। हमारे वैदिक सनातन धर्म के 16 संस्कारों में अन्नप्राशन संस्कार भी शामिल है।

पारम्परिक भक्तिभाव के साथ साथ इस वर्ष के अन्नकूट की विशेषता थी “श्री अन्न” से बने पकवान वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय श्री अन्न वर्ष घोषित किया गया है और इसी आधुनिक विचारधारा को स्वामीनारायण अक्षरधाम, दिल्ली ने उत्कृष्टता से प्रस्तुत किया।

इस आकर्षक अन्नकूट के दर्शन हेतु दिल्ली के विशिष्ट एवं अति-विशिष्ट अतिथियों का आवागमन निरंतर चलता रहा।

मंदिर में बड़ी पंक्तियों में खड़े श्रद्धालु बहुत उत्सुकता से इस प्रिय दर्शन का लाभ लेने हेतु व्याकुल दिखाई दे रहे थे। सभी आयु एवं वर्गों के लोगों और श्रोताओं ने गोवर्धन पूजा और अन्नकूट दर्शन का भरसक आनंद लिया और अगले वर्ष भी यहाँ आगमन हेतु इच्छा व्यक्त की।

कार्तिक माह की शुक्ल प्रतिपदा (दीपावली के अगले दिन) अन्नकूट का महोत्सव मनाया जाता है। इस दिवस पर द्वापर युग में श्री कृष्ण भगवान ने इंद्र देव पर विजय प्राप्त कर, अपनी एक अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को धारण कर, गोकुल वासियों की रक्षा की थी। इसलिए, इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है।

हिन्दुस्थान समाचार/सुशील

/दधिबल