जामिया विवि के प्रश्नपत्र पर विवाद, अभाविप ने बताया भारतीय एकता को खंडित करने का प्रयास
नई दिल्ली, 24 दिसंबर (हि.स.)। जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के समाज कार्य विभाग के एक परीक्षा प्रश्नपत्र को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) ने बीए (विशेष) प्रथम सेमेस्टर के विषय “सोशल प्रोब्लम इन इंडिया” की परीक्षा में पूछे गए एक प्रश्न को भारतीय समाज की एकता और समावेशी प्रकृति के विरुद्ध बताते हुए कड़ी आपत्ति जताई है।
अभाविप के अनुसार 22 दिसंबर को आयोजित प्रथम सेमेस्टर की परीक्षा में “भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के विरुद्ध अत्याचारों पर उदाहरण सहित चर्चा” जैसा प्रश्न शामिल किया गया, जो अकादमिक संतुलन और पाठ्यक्रम की भावना के विपरीत है। अभाविप का कहना है कि इस प्रकार का प्रश्न समाज को एकपक्षीय दृष्टि से प्रस्तुत करता है और छात्रों के मन में पूर्वग्रह, अविश्वास तथा वैचारिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे सकता है।
अभाविप ने कहा कि समाज कार्य जैसे विषय का उद्देश्य समाज को विभाजित करना नहीं, बल्कि उसकी जटिलताओं को समझते हुए सामाजिक समरसता और सशक्तिकरण की दिशा में चिंतन विकसित करना होना चाहिए। संगठन का आरोप है कि प्रश्न में प्रयुक्त शब्दावली, विशेष रूप से “अत्याचार” छात्रों को एक पूर्वनिर्धारित निष्कर्ष की ओर ले जाती है, जो अकादमिक स्वतंत्रता के बजाय वैचारिक दिशा-निर्देशन का संकेत देती है।
अभाविप ने यह भी सवाल उठाया कि भारत जैसे बहुपांथिक और बहु-अल्पसंख्यक समाज में केवल एक समुदाय को केंद्र में रखकर प्रश्न तैयार करना सामाजिक यथार्थ का असंतुलित चित्रण है। अभाविप का कहना है कि सिख, जैन, बौद्ध, पारसी सहित अनेक समुदायों का देश के निर्माण में समान योगदान रहा है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
अभाविप ने आरोप लगाया कि वामपंथी और विभाजनकारी विचारधाराएं लंबे समय से शैक्षणिक संस्थानों के माध्यम से समाज में अविश्वास और टकराव का वातावरण बनाने का प्रयास कर रही हैं और यह प्रश्न उसी प्रवृत्ति का उदाहरण है।
इस पूरे मामले पर अभाविप दिल्ली प्रदेश मंत्री सार्थक शर्मा ने कहा कि जामिया के प्रश्नपत्र में समाज को एकतरफा दृष्टिकोण से प्रस्तुत करना केवल अकादमिक चूक नहीं, बल्कि सुनियोजित वैचारिक असंतुलन का परिणाम प्रतीत होता है। उन्होंने विश्वविद्यालय प्रशासन से इस प्रकरण की गंभीर, निष्पक्ष और अकादमिक समीक्षा कराने की मांग की।
अभाविप ने यह भी मांग की कि परीक्षा प्रश्नपत्रों के निर्माण और अनुमोदन की प्रक्रिया में स्पष्ट दिशा-निर्देश और जवाबदेही तय की जाए, ताकि शैक्षणिक मंचों का उपयोग समाज में आक्रोश, अविश्वास और वैचारिक अस्थिरता फैलाने के लिए न हो।
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हिन्दुस्थान समाचार / माधवी त्रिपाठी