वनधन केंद्र दुगली में तैयार हो रहे एलोवेरा के विभिन्न उत्पाद

 




धमतरी, 27 नवंबर (हि.स.)। धमतरी जिले का वनांचल क्षेत्र कई आयुर्वेदिक औषधियां के लिए प्रसिद्ध है। महिला समूह को आत्मनिर्भर बनाने और वन औषधीय को जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से इन दिनों वन उत्पाद से विभिन्न उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं। इससे महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं।

प्रधानमंत्री वनधन विकास योजनान्तर्गत वनांचल नगरी के दुगली स्थित वनधन विकास केंद्र वर्ष 2018 से संचालित है। इसके जरिए समूह की महिलाओं को महिलाओं को पूरे वर्षभर कार्य मिल जाता है। इसके अलावा समय-समय पर जब कार्य अधिक होता है, तो अन्य समूह की महिलाओं को भी बुलाया जाता है। वनधन विकास केंद्र दुगली में कुल 22 प्रकार की सामग्रियां तैयार की जातीं हैं, इनमें से 15 प्रकार की औषधि एवं खाद्य सामग्री का निर्माण शामिल है, जिसका आयुष एवं खाद्य विभाग से लाइसेंस भी मिला है। यहां वर्ष 2023 से एलोवेरा का उत्पाद साबून, शैंपू, मोस्चराईजर, बाडीवाश आदि तैयार किया जा रहा है, जिसका ड्रग एवं कास्मेटिक विभाग से लायसेंस मिला है। प्रदेश में एकमात्र वनधन विकास केंद्र दुगली है, जिसमें एलोवीरा का प्रिमियम प्रोडक्ट तैयार किया जाता है। इसके अतिरिक्त यहां का तिखूर अच्छी गुणवत्ता का तैयार किया जाता है। इन उत्पादों को बेहतर गुणवत्तायुक्त तैयार करने के लिए समय-समय पर विशेषज्ञों द्वारा महिला समूहों को प्रशिक्षण भी दिया जाता है। जानकारी के अनुसार यहां 22 प्रकार के उत्पाद एलोवीरा जूस, साबून, बाडी वाश, शैंपू, जेल, मोस्चराईजर, हेयर कंडीशनर के साथ ही आंवला कैंण्डी, आंवला जूस, आंवला चूर्ण, बेहड़ा पावडर, त्रिफला चूर्ण, शतावर चूर्ण, अश्वगंधा चूर्ण, अर्जुन चूर्ण, जामुन गुठली चूर्ण, कालमेघ चूर्ण, तिखुर पावडर, बैचांदी चिप्स, माहुल पत्ता, शीशल रस्सी और शहद निर्मित किया जाता है। भारत सरकार ट्राइबल विभाग द्वारा वर्ष 2021 में वनधन विकास केंद्र दुगली को प्रदेश में अधिक संग्रहण के लिए अवार्ड भी प्रदाय किया गया है। इस वनधन केंद्र कों मशीनरी एवं तकनीकी सहयोग भी मिल रहा है, जिससे केन्द्र दिनों दिन प्रगति कर रहा है। मालूम हो कि वनधन योजना का प्रमुख काम आदिवासी लोगों के लिए आजीविका सृजन को लक्षित करना और उन्हें उद्यमियों में बदलना है। इसके अलावा वनाें से आच्छादित क्षेत्रों में वनधन विकास केंद्रों के स्वामित्व वाले जनजातीय समुदाय को स्थापित करना है, ताकि वन उपज के लिए प्राथमिक प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके और जनजातियों के लिए रोजगार उपलब्ध हो सके।

हिन्दुस्थान समाचार / रोशन सिन्हा