कोरबा : नई श्रम संहिताओं पर देशभर में विरोध तेज, एटक कोल फेडरेशन ने जताई तीखी आपत्ति
कोरबा, 05 दिसंबर (हि. स.)। केंद्र सरकार द्वारा आज़ादी के पहले से लागू 29 श्रम कानूनों को चार नई श्रम संहिताओं—वेतन संहिता 2019, औद्योगिक संबंध संहिता 2020, सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 और व्यावसायिक सुरक्षा, अब स्वास्थ्य एवं कार्य शर्त संहिता 2020—में समाहित किए जाने का देशभर के लगभग सभी केंद्रीय श्रमिक संगठनों (भारतीय मजदूर संघ को छोड़कर) द्वारा कड़ा विरोध किया जा रहा है।
एटक कोल फेडरेशन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दीपेश मिश्रा ने कहा कि, सरकार ने संसद में दावा किया था कि ये श्रम संहिताएं कार्यस्थल की बदलती परिस्थितियों के अनुरूप श्रम कानूनों को आधुनिक बनाने और श्रमिकों के हितों को मजबूत करने के लिए लाई जा रही हैं, लेकिन वास्तविकता इसके बिल्कुल विपरीत है। उनके अनुसार, सुधार के नाम पर कमजोर श्रमिकों को मालिकों के भरोसे छोड़ने की तैयारी की जा रही है।
मिश्रा ने कहा कि फैक्ट्री एक्ट में किए गए संशोधनों के चलते पहले जहां 15 से 20 कर्मचारियों वाले उद्योग इस कानून के दायरे में आते थे, अब इसकी सीमा बढ़ाकर 100 कर दी गई है। इससे बड़ी संख्या में छोटे कारखाने फैक्ट्री एक्ट के नियमन से बाहर हो जाएंगे और श्रमिकों का कानूनी संरक्षण कमज़ोर होगा। उन्होंने बताया कि पहले 100 से अधिक कर्मचारियों वाले उद्योग को बंद करने से पहले सरकारी अनुमति आवश्यक थी, लेकिन नए कोड में यह सीमा 300 तय कर दी गई है। यानी 300 से कम कर्मचारियों वाले कारखाने बिना सरकारी मंजूरी के बंद किए जा सकेंगे, जिससे लाखों श्रमिकों की नौकरी सुरक्षा प्रभावित होगी।
वेतन संहिता 2019 के संदर्भ में उन्होंने कहा कि सरकार ने न्यूनतम वेतन अधिनियम 1948, वेतन भुगतान अधिनियम 1936, बोनस भुगतान अधिनियम 1965 और समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976 को एक साथ मिलाकर मजदूरों के हित में बने कई प्रावधानों को कमजोर कर दिया है। वर्तमान व्यवस्था में न्यूनतम वेतन त्रिपक्षीय समिति—ट्रेड यूनियंस, कॉर्पोरेट और सरकार—की सहमति से तय होता है, लेकिन नए वेज कोड में मजदूरों की राय जाने बिना केवल सरकारी नौकरशाह फ्लोर वेज निर्धारित करेंगे, जिसे मजदूरों को हर हाल में मानना होगा। इसके अलावा, फ्लोर वेज की समीक्षा अब दो वर्ष के बजाय हर पांच वर्ष में की जाएगी।
मिश्रा ने यह भी कहा कि नए वेज कोड में कार्य दिवस के घंटे 8 से बढ़ाने का प्रस्ताव अंतरराष्ट्रीय श्रम कानून के सिद्धांतों के विरुद्ध है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार इन श्रम संहिताओं के माध्यम से मजदूर संगठनों पर नकेल कसना चाहती है और देश में व्यापक कॉन्ट्रैक्ट सिस्टम लागू करने का प्रयास कर रही है।
उन्होंने कहा कि इन श्रम संहिताओं के वास्तविक प्रावधानों और इनके प्रभावों के बारे में न तो स्पष्ट जानकारी दी गई और न ही संसद में इस पर गंभीर चर्चा हुई। संसदीय समितियों की सिफारिशों पर भी अमल नहीं किया गया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि सरकार श्रमिकों के हितों की रक्षा करने के बजाय श्रम कानूनों को कॉर्पोरेट हित में ढालने की दिशा में बढ़ रही है।
अंत में दीपेश मिश्रा ने कहा कि मौजूदा सरकार की नीतियां मेहनतकश वर्ग के खिलाफ हैं और संयुक्त श्रम संगठन इसका लगातार विरोध जारी रखेंगे।
हिन्दुस्थान समाचार/ हरीश तिवारी
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हिन्दुस्थान समाचार / हरीश तिवारी