बस्तर दशहरा: मांईजी की डोली व छत्र पंहुचा दंतेश्वरी मंदिर,194 गांव के देवी-देवता हुए शामिल

 






जगदलपुर,15अक्टूबर (हि.स.)। बस्तर दशहरा के मावली परघाव पूजा विधान में शामिल होने के लिए दंतेवाड़ा शक्तिपीठ से जगदलपुर पहुंची माता मावली की डोली और दंतेश्वरी के छत्र का बस्तरवासियों ने भव्य स्वागत किया। मावली माता की डोली और दंतेश्वरी के छत्र को जियाडेरा से दंतेश्वरी मंदिर तक पहुंचाने में बस्तर का जन सैलाब सड़क के दोनों ओर मौजूद रहा। जिनकी अगवानी राज परिवार के सदस्य, कुंवर परिवार, जनप्रतिनिधि, राजपुरोहित ने किया।

बस्तर दशहरा की सबसे महत्वपूर्ण पूजा विधान मावली परघाव में बस्तर संभाग के 194 गांव के देवी-देवता शामिल हुए। जिसकी रियासत कालीन भव्यता आज भी अपने आप में आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

राजगुरू नवीन ठाकुर ने बताया कि मावली देवी की अगवानी या स्वागत को स्थानीय बोली में मावली परघाव कहा जाता है। उन्होंने बताया कि रस्म के मुताबिक दंतेवाड़ा में नए कपड़े में चंदन का लेप देकर मावली की मूर्ति बनाकर पुष्पाच्छादित किया जाता है। इस मूर्ति को ही डोली में विराजित कर दंतेवाड़ा से जगदलपुर लाया गया, देवी अपने साथ नए अन्न भी लाई है। इस अन्न से ही बस्तर राजपरिवार कुम्हड़ाकोट जंगल में 25 अक्टूबर को बाहर रैनी रथ यात्रा पूजा विधान के दौरान नवाखानी त्यौहार मनाएगा।

उल्लेखनीय है कि माता मावली की डोली तथा मां दंतेश्वरी का छत्र दंतेवाड़ा से जगदलपुर लाकर जिया डेरा में स्थापित किया गया था। जिसके बाद आज सोमवार को देर शाम को परंपरानुसार बस्तर दशहरा में शामिल होने दन्तेश्वरी मंदिर में लाकर स्थापित किया गया। दंतेश्वरी मंदिर में 30 अक्टूबर तक मावली माता की डोली और दंतेश्वरी के छत्र के दर्शन होंगे। 31 अक्टूबर को माता की विदाई के भव्य आयोजन के साथ माता मावली की डोली तथा मां दंतेश्वरी का छत्र वापस दंतेवाड़ा रवाना होगी।

हिन्दुस्थान समाचार/राकेश पांडे