बाना-सांगा के साथ निकली मां मंदरमाई की शोभायात्रा, सैंकड़ों लोग हुए शामिल
धमतरी, 14 अक्टूबर (हि.स.)। धमतरी शहर के मराठापारा स्थित मंदर माई की कलश शोभायात्रा परंपरानुसार निकली। रविवार शाम जोत-जंवारा विसर्जन शोभायात्रा में सैंकड़ों लोग शामिल हुए। सिर पर ज्योति कलश लेकर युवतियां चल रही थीं। शोभायात्रा के आगे पारंपरिक बाजे के साथ मुंह, जीभ में बाना-सांगा लेकर 10 से अधिक युवा नाचते-झूमते शोभायात्रा में शामिल हुए। सबसे आगे मंदर माई ध्वज लेकर युवा चल रहे थे। पारंपरिक बाजे की धुन पर शोभायात्रा विंध्यवासिनी मंदिर से शीतला माता मंदिर पहुंची। रास्तेभर महिलाएं झूपते हुए चलती रहीं। लाेगों ने शोभायात्रा की पूजा अर्चना कर परिवार की खुशहाली की कामना की।
मंदर माई का ज्योत जंवारा विसर्जन यात्रा दशहरे के दूसरे दिन निकाली गई। मराठापारा से निकली शोभायात्रा रात नौ बजे विंध्यवासिनी मंदिर पहुंची। यहां से शीतला माता मंदिर के पास शीतला तालाब जोत-जंवारा का विसर्जन किया गया। शोभायात्रा मराठापारा से होते हुए बम्लेश्वरी चौक के पास निकली, जो गणेश चौक, रामबाग से विंध्यवासिनी मंदिर पहुंची। महिलाएं सिर पर जोत जंवारा लेकर लगभग दो किमी की दूरी पांच घंटे में पूरी की। रास्तेभर श्रद्धालु सांगा-बाना लेकर देव बाजे की थाप पर झूमते रहे। मालूम हो कि मंदिर में ज्योत जंवारा की स्थापना पंचमी के दिन होती है। पीढ़ी दर पीढ़ी मंदिर में परंपरा का निर्वाह हो रहा है। मंदिर माई मंदिर में पंचमी के दिन नवरात्र महोत्सव आरंभ होता है। पांच दिनों तक देवी की आराधना के बाद एकादशी यानि दशमी के अगले दिन मंदिर से विसर्जन शोभायात्रा निकाली जाती है। जोत जंवारा का जुलूस को गंतव्य तक पहुंचने में 5 घंटे का समय लगा। विसर्जन यात्रा देखने हजारों भक्तों की भीड़ लगी रही। शहर सहित ग्रामीण अंचल से भी देवी भक्त बड़ी संख्या में पहुंचे थे। सदर बाजार 5 घंटे तक जाम रहा।पुलिस की तगड़ी व्यवस्था रही। राहगीरों को रूट बदलकर जाने का आग्रह किया गया। विसर्जन यात्रा में जोत जंवारा की जगह-जगह आरती उताकर पूजा अर्चना की गई और माता से आशीर्वाद लिया गया।
देवविग्रह नवरात्र में ही देते हैं दर्शन
मंदिर के पुजारी राजकुमार ध्रुव ने बताया कि मंदिर की परंपरा है कि यहां के देव विग्रह पूरे वर्ष भर टोकरी में विश्राम करते हैं। सिर्फ नवरात्र में ही भक्तों को दर्शन देते हैं। इस बार मंदिर में 151 जोत कलश प्रज्ज्वलित की गई थी। मंदिर 200 साल पुरानी है। इनकी अन्य मंदिरों से परंपरा अलग है। यहां स्थापित कंकालीन देवी, रिक्छीन माता, मढ़या देव, लंगूर देव, बुढ़ी माई, झांपी से सिर्फ नवरात्र में ही बाहर निकलते हैं। विसर्जन के दूसरे दिन झांपी (टोकरी) में स्थापित किया जाता है। मंदिर की परंपरा है कि यहां पंचमी के दिन ही जोत जंवारा बोया जाता है। लगातार पांच दिन पूजा होने के बाद दशहरा के दूसरे दिन विसर्जित की जाती है।
चौथी पीढ़ी कर रही सेवा
पुजारी राजकुमार ध्रुव ने बताया कि वर्तमान में देवी देवता की पूजा चौथी पीढ़ी कर रही है। मंदिर 200 साल से भी अधिक पुराना है। मंदिर के प्रति भक्तों की अगाध श्रद्धा है। दूर-दूर के भक्त यहां जोत कलश जलाने आते हैं। सच्चे मन से पूजा अर्चना करने वाले भक्त कभी निराश नहीं होते। इसका सैकड़ों उदाहरण है। मंदिर में सभी वर्ग के लोग मत्था टेकने पहुंचते हैं।
हिन्दुस्थान समाचार / रोशन सिन्हा