प्रकृतिक रहस्यों का संग्रह कोटमसर गुफा खुलने के एक सप्ताह में एक हजार से अधिक पर्यटक पहुंचे

 




जगदलपुर, 24 नवंबर (हि.स.)। कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के भीतर स्थित कोटमसर गुफा अपने अद्वितीय प्राकृतिक निर्माणों और रहस्यमय जीवों के कारण पर्यटकों को आर्कषित करती है। पहले बारिश और फिर विवाद के कारण इस बार कोटमसर गुफा को लगभग एक माह देरी से खोला गया है। इस बीच यहां पहुंच रहे पयर्टकों को निराश होना पड़ रहा था, लेकिन वन विभाग और ग्रामीणों के बीच कोटमसर गांव में एक घंटे का स्टापेज देने के निर्णय के आधार पर ग्रामीणों ने भी गुफा खोले जाने पर सहमति दे दी। कोटमसर गुफा खुलने के एक सप्ताह में यहां एक हजार से अधिक पर्यटक पहुंचे हैं।

आज रविवार को भी 52 जिप्सी की बुकिंग यहां हुई थी। इधर कोटमसर गुफा के नहीं खोलने के कारण कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में स्थित अन्य गुफाओं में पर्यटन बढ़ने की बात प्रबंधन ने कही थी। कोटमसर में ग्रामीणों के विवाद के कारण प्रबंधन ने कैलाश गुफा में सुविधाएं विकसित करना प्रारंभ कर दिया था। इससे विगत एक माह में लगभग पांच हजार पर्यटकों ने कैलाश गुफा पहुंचे हैं, प्रबंधन की ओर से अब यहां और भी सुविधाएं विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है।

उल्लेखनीय है कि कोटमसर गुफा में प्रवेश करते ही, पर्यटक इन प्राकृतिक चमत्कारों को देखकर दंग रह जाते हैं। इस गुफा में स्थित अंधे कुएं पर चोट करने से जो खोखली आवाज सुनाई देती है, वह यहां आने वालों को एक अनोखा अनुभव देती है। साथ ही, यहां पाई जाने वाली अंधी मछलियां और अन्य सरीसृप इस गुफा को और भी रहस्यमय बनाते हैं।

कोटमसर गुफा में प्रकृति ने गढ़ी है अद्भुत संरचनाएं

कोटमसर गुफा को प्रकृति ने अद्भुत संरचनाओं से संवारा है, यहां स्टैलेक्टाइट और स्टैलेग्माइट स्तंभों की भरमार है। गुफा का प्रवेश द्वार मात्र पांच फीट ऊंचा और तीन फीट चौड़ा एक छोटा सा मार्ग है। गुफा में पांच विशाल कक्ष हैं, जिनमें कई अंधे कुएं भी हैं। चट्टान से ढंके एक अंधे कुएं पर चोट करने पर खोखली ध्वनि सुनाई देती है। गुफा के अंदर जाने का रास्ता 330 मीटर लंबा और 20 मीटर से 72 मीटर चौड़ा है। गुफा में कई सरीसृप, मकड़ियां, चमगादड़ और झींगुर मौजूद हैं। यहां अंधी मछलियां पाई जाती हैं, जो गुफा के जैव विविधता को दर्शाती हैं। गुफा के पिछले हिस्से में चूना पत्थर से बना एक 'शिवलिंग' पर्यटकाे के लिए आकर्षण केंद्र है। जहां प्रकृति ने आकर्षक रहस्यों का संग्रह किया है, पर्यटकों के बीच अब एक आकर्षण का केंद्र बन चुका है।

कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के प्रबंधक चूड़ामणी सिंह ने बताया कि कोटमसर गांव बस्तर की विशिष्ट धुरवा जनजाति का घर है। यह जनजाति केवल राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र के आस-पास ही निवास करती है। इससे अब पर्यटकों को धुरवा जनजाति के संस्कृति, परंपरा को देखने-समझने का भी अवसर मिलेगा। पार्क प्रबंधन की ओर से कोटमसर के ग्रामीणों को रोजगार उपलब्ध कराने के साथ ही सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा देने यह निर्णय लिया गया है। यहां पर्यटक धुरवा जनजाति के पंरपरागत नृत्य का आनंद लेने के साथ ही बस्तर की पंरपरागत भोजन का स्वाद भी चख सके।

हिन्दुस्थान समाचार / राकेश पांडे