29 फरवरी को सिंगार उतारनी रस्म के साथ घोटपाल मड़ई का होगा समापन

 




दंतेवाड़ा, 28 फरवरी(हि.स.)। जिले के गीदम ब्लॉक के घोटपाल में दक्षिण बस्तर अंचल की सबसे प्रसिद्ध व पारंपरिक घोटपाल मड़ई में आस-पास के क्षेत्रों से देवी-देवता के पहुंचने के साथ ही परंपरानुसार विधिवत पूजा अर्चना कर इसका शुभारंभ 27 फरवरी को हो गया है, 29 फरवरी को सिंगार उतारनी रस्म के साथ घोटपाल मड़ई का समापन होगा। बस्तर अंचल में घोटपाल मेला स्थानिय ग्रामीणों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। उसेंडी तादो मेला समिति व मंदिर समिति के निर्देशन पर आयोजित होने वाले मेले में स्थानीय ग्रामीणों के साथ पूरे संभाग से ग्रामीण इस मेला में शामिल होते हैं।

उसेंडी तादो मेला समिति से मिली जानकारी के अनुसार इस आयोजन में उसेंडी तादो देव के परिजन मसेनार, बिंजाम, कुहचेपाल, कोरलापाल, तारलापाल व कटुलनार से हर साल मिलने पहुंचते हैं। उसेंडी देवता के बिंजाम निवासी पुत्र हुंगा, वेल्ला और बोमड़ा देव का आगमन एक दिन पहले यहां पहुंच जाते हैं। बड़ा मेला भरने से पहले पखवाड़े भर तक स्थानीय आदिवासी रोजाना शाम को ढोल बजाकर देव जागरण करते हैं। बड़ा मेला के दिन रात भर ढोल बाजे के साथ नृत्य का क्रम चलता है, फिर अगले दिन देवी-देवताओं की विदाई हो जाती है। इन गांवों से आए रिश्तेदार घोटपाल में उसेंडी देव के दरबार में हाजिरी लगाने दूर-दराज से आए परिजनों में हारिका, बिसरा, लिंगा देवा, हादुर कारली से हुंगा, गद बोमड़ा, इर्स हुंगाल, उठा बडय़ा, जाबुर हुंगा, चेरलापाल से बंड कुंवार, कंडहिरे, कंडपालो, कोरलापाल से बोमड़ा, मसेनार से गदाहारिक, जात बोमड़ा, देवा, कटुलनार से हिरे, हिरे बिसरा, हिरे हारिक, कोहला कोसो, बोमड़ा, दल अनाल, विश्रदेवी, तारलापाल से कुंवर पेन, कंडहिरे, पाली व बोमड़ा शामिल हैं।

जिला प्रशासन द्वारा लोगों को जागरूक करने विभिन्न विभागों की योजनाओं की विभागीय प्रर्दशनी भी लगाई गयी है। प्रशासन के द्वारा स्टाल, पेयजल सहित जरूरी सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाती है। बच्चे, बूढ़े और सभी वर्ग के लोग मेले में पहुंचते हैं। शाम के समय भीड़ अधिक जुटती है और रात भर लोग नृत्य व अन्य आयोजनों का आनंद लेते हैं। बच्चों के झूले, महिलाओं के लिए सामान, सभी प्रकार की दुकानें यहां लगती हैं। व्यापारी वर्ग भी इस मेले के लिए तैयार रहते हैं और अच्छी आमदनी प्राप्त करते हैं।

हिन्दुस्थान समाचार, राकेश पांडे