दिल्ली में गणतंत्र दिवस की झांकी में बस्तर दशहरा का मुरिया दरबार करेगा छग प्रतिनिधित्व
जगदलपुर, 24 जनवरी (हि.स.)। देश के 74वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर इस वर्ष छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा का एक विधान मुरिया दरबार करेगा। 26 जनवरी को छत्तीसगढ़ सरकार की यह झांकी दिल्ली के राजपथ पर चलेगी।
उल्लेखनीय है कि इससे पहले भी छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व बस्तर संदर्भित दो झांकियां कोटमसर की गुफा और क्रांतिवीर गुंडाधुर कर चुकी हैं। गणतंत्र दिवस पर नई दिल्ली के कर्तव्य-पथ पर प्रदर्शित होने वाली छत्तीसगढ़ की झांकी बस्तर की आदिम जन संसद: मुरिया दरबार में जगदलपुर के बस्तर-दशहरे की परंपरा में शामिल मुरिया-दरबार और बड़े-डोंगर के लिमऊ-राजा को केंद्रीय विषय बनाया गया है। साथ ही झांकी की साज-सज्जा में बस्तर के बेलमेटल और टेराकोटा शिल्प की खूबसूरती से भी दुनिया को परिचित कराया गया है।
झांकी के प्लेटफार्म पर लिमऊराजा के निकट ही बेलमेटल का बैठा हुआ सुंदर नंदी प्रदर्शित है, जो आदिम समाज के आत्मविश्वास और सांस्कृतिक सौंदर्य के प्रतीक रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। प्लेटफार्म पर चारों दिशाओं में टेराकोटा शिल्प से निर्मित सुसज्जित हाथी सजे हुए है, जिन्हें लोक की सत्ता के प्रतीक के तौर पर प्रस्तुत किया जा रहा है। मुरिया दरबार में बस्तर में आदिम काल से लेकर अब तक हुए सांस्कृतिक विकास की झलक भी दिखाई जा रही है। झांकी से सबसे सामने के हिस्से में एक आदिवासी युवती को अपनी बात प्रस्तुत करते हुए दर्शाया जा रहा है, युवती की पारंपरिक वेशभूषा के माध्यम से बस्तर के सौंदर्यबोध और सुसंस्कारित पहनावे को प्रदर्शित किया गया है।
उल्लेखनीय है कि मुरिया दरबार रियासत काल में एकतंत्रीय न्याय प्रणाली के रूप में स्थापित थी जो, रियासत की जनता को स्वीकार्य होती थी। मुरिया दरबार का सूत्रपात 08 मार्च 1876 को पहली बार हुआ था, इस मुरिया दरबार में सिरोंचा के डिप्टी कमिश्नर मेकजार्ज ने राजा और उनके अधिकारियों को संबोधित किया था। बस्तर में बसने वाले जाति और जनजातीय परिवारों यथा-हल्बा, भतरा, धुरवा, गदबा, दोरला, गोंड, मुरिया, राजा मुरिया, घोटुल मुरिया, झोरिया मुरिया आदि जाति के पहचान के लिए पूर्व में मुरिया शब्द ही प्रयोग में लाया जाता रहा है। 1931 के बाद से जातीय और जनजातीय परिवारों की गणना पृथक से करने के बाद इन्हें उनके जातिगत शब्दों से उल्लेख किया गया। मुरिया दरबार, आदिवासी शब्द के अर्थ में आज भी प्रचलन में है। मुर का अर्थ, हल्बी में प्रारंभ या मूल होता है, अर्थात् इस अंचल में प्राचीन समय से बसे हुए आदिवासी परिवारों के लिए मुर शब्द में साथ इया प्रत्यय लगाने के बाद मुरिया कहलाया, मुरिया अर्थात् मूल निवासी।
रियासत काल में आदिवासी संबोधन प्रचलित नहीं था। मुरिया अर्थात् मूलिया मूल संज्ञा का विशेषण है। मूलिया शब्द का अर्थ मूल से ही है। इसी मूलिया शब्द के अतिशय प्रयोग से मुरिया परिवर्तित हो गया। मुरिया दरबार में ग्रामीण और शहरी जनप्रतिनिधियों के बीच आवश्यक विषयों को लेकर चर्चा होती है। रियासत काल में जनता और राजा के मध्य वर्ष में एक बार दरबार के माध्यम से विभिन्न मुद्दों को लेकर विचार-विर्मश हुआ करता था। समस्याओं का समाधान भी त्वरित हुआ करता था। रियासत के मांझी, मुखिया, कोटवार, चालकी, नाईक, पाईक आदि जनप्रतिनिधि अपने-अपने क्षेत्रों की समस्या दरबार में प्रस्तुत करते थे, समस्याओं पर चर्चा की जाती थी। किसी तरह की कठिनाई आने पर उसका हल निकाला जाता था। यह शिकायत अपने क्षेत्र के अलावा राज्य के कर्मचारियों की भी होती थी।
हिन्दुस्थान समाचार/राकेश पांडे