कुम्हड़ाकोट में राजा नवाखनी-बाहर रैनी पूजा विधान के साथ बस्तर दशहरा विजय रथ की देर रात हाेगी वापसी
जगदलपुर, 14 अक्टूबर (हि.स.)। बस्तर दशहरा में बाहर रैनी पूजा विधान में परंपरानुसार चोरी किए गए रथ को वापस लाने के लिए राज परिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव, बस्तर दशहरा समिति के अध्यक्ष बस्तर सांसद महेश कश्यप, राजगुरू, पुजारियों मांझी-मुखिया के साथ आज साेमवार 3 बजे राजमहल से पूरे लाव लश्कर गाजे-बाजे के साथ कुम्हड़ाकोट के जंगल पंहुचकर, जहां ग्रामीणों के साथ नवाखानी त्योहार में उनके साथ नये चावल का प्रसाद ग्रहंण किया। फिर दंतेश्वरी मंदिर पुजारी ने रथ वापसी से पहले माईजी के छत्र को रथ पर विराजित किया, इसके बाद कुम्हड़ाकोट से 8 चक्के के दुमंजिला विजय रथ की बाहर रैनी पूजा विधान के साथ रथ आज देर रात्रि को लगभग 10 बजे तक मां दंतेश्वार मंदिर के सिंहद्वार में पंहुचने की संभावना है। जिसके बाद माईजी के छत्र को विधि-विधान के साथ दंतेश्वरी मंदिर में स्थापित किया जायेगा। इस दौरान जनप्रतिनिधियों व दशहरा समिति से जुड़े लोगों के अलावा बड़ी संख्या में ग्रामीण व अन्य मौजूद थे।
उल्लेखनीय हाे कि बस्तर दशहरा के दुमंजिला आठ पहियों वाले विजय रथ को भीतर रैनी रथ परिक्रमा पूजा विधान बीती रात 12 बजे संपन्न करने के बाद आठ पहियों वाले रथ को चुराकर शहर के पास स्थित कुम्हड़ाकोट के जंगल में ले जाने की रियासतकालीन परंपरा का निर्वहन रविवार-सेमवार की दरमियानी रात्रि 3 बजे संपन्न किया गया। रथ को खोजे जाने की परंपरा के निर्वहन के साथ राजपरिवार पूरे लाव-लश्कर के साथ आज साेमवार दाेपहर 3 बजे को कुम्हड़ाकोट पहुंचा। यहां राजपरिवार द्वारा रथ की वापसी के लिए मान-मनौव्वल किया गया। माडिया समुदाय द्वारा इसके लिए साथ मिलकर नवाखाई की शर्त रखी गई, जिसे राजपरिवार द्वारा सहर्ष स्वीकार कर पूरा किया गया। फिर यहां नवाखाई का विधान पूरा करने के बाद बाहर रैनी पूजा विधान के साथ रथ को देर रात वापस मां दंतेश्वार मंदिर के सिंहद्वार में पहुचाया जायेगा।
उल्लेखनीय है कि बस्तर दशहरा में रथ को कुम्हड़ाकोट के जंगल में ले जाने के कारण रथ परिक्रमा के दायरे से बाहर हो जाता है, कुम्हड़ाकोट से बस्तर दशहा रथ की वापसी की रियासतकालीन परंपरा को बाहर रैनी पूजा विधान कहा जाता है, बाहर रैनी पूजा विधान में कुम्हड़ाकोट के जंगल से पुन: आठ पहियों वाले विजय रथ की वापसी आज साेमवार रात्री लगभग 10 बजे तक संपन्न किया जायेगा। विजय रथ काे उसी मार्ग से वापस राजमहल के सिंहद्वार के सामने खड़ा कर मां दंतंश्वरी के छत्र को मंदिर में स्थापित करने के साथ ही बाहर रैनी पूजा विधान संपन्न हाे जायेगा, इसी के साथ बस्तर दशहरा में रथ परिचालन भी संपन्न हो जायेगा। इसके बाद बस्तर दशहरा अपने अंतिम पड़ाव में काछन जात्रा, कुटुब जात्रा के साथ बस्तर संभाग सहित पड़ोसी प्रदेश से आमंत्रित देवी-देवताओं की विदाई का क्रम शुरू हो जायेगा।
आठ पहियों वाले विजय रथ को चोरी कर ले जाने की परंपरा के तहत बास्तानार कोड़ेनार क्षेत्र के 33 गांवों के सैकडाें माडिय़ा जनजाति के ग्रामीण राजमहल के सामने खड़े रथ को बीती रात्री 12 बजे खींचते हुए कुम्हड़ाकोट ले गये। बस्तर दशहा में रथ चुराने की रस्म की शुरूआत शताब्दियों पहले बास्तानार कोड़ेनार-क्षेत्र के माडिय़ा जनजाति के ग्रामीणों के द्वारा अंजाम दिया गया था, तब से यह बस्तर दशहरा की रियासतकालीन परंपरा बन गई। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि बस्तर महाराजा के प्रति ग्रामीणों के अगाध आस्था और विश्वास का प्रतीक है, ग्रामीणों के द्वारा रथ चुराकर स्वयं ले जाने के बाद बस्तर महाराजा को अपने नियत स्थान पर बुलाकर वहां पर बस्तर महाराजा के साथ राजा नवाखानी पूजा विधान के बाद मां दंतेश्वरी के छत्र को रथारूढ़कर राजमहल वापस लाने से जुडा़ हुआ है। तब से कुम्हड़ाकोट में राजपरिवार राजा नवाखानी की परंपरा का निर्वहन करता चला आ रहा है।
हिन्दुस्थान समाचार / राकेश पांडे