राष्ट्रीय नाट्य समारोह : मुंबई की टीम ने दिखाया ''मधुशाला'', आकाशगंगा का था ''अमली''
बेगूसराय, 12 दिसम्बर (हि.स.)। संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से द प्लेयर्स एक्ट द्वारा बेगूसराय के दिनकर कला भवन में आयोजित चार दिवसीय राष्ट्रीय नाट्य समारोह ''रंग उत्सव 2023'' के पहले दिन दो बेहतरीन नाटकों की प्रस्तुति हुई। पहली प्रस्तुति हरिवंश राय बच्चन की कालजयी रचना ''मधुशाला'' का मंचन युवा रंग निर्देशक मोहन सागर के निर्देशन में मुंबई की रंग संस्था मकाम के बैनर तले हुआ।
नाटक ने बताया कि मधुशाला ने हाला, प्याला, मधुबाला और मधुशाला के चार प्रतीकों के माध्यम से कवि ने अनेक क्रांतिकारी मर्म स्पर्शी रगात्मक एवं रहस्य पूर्ण भावों को वाणी दी है। अभिनेता के तौर पर मोहन सागर ने अपने अंदाज और अभिनय से इस संगीतमय प्रस्तुति को जीवंत कर दिया। कविता की हर पंक्ति पर अभिनेता ने तालियां बटोरी। हारमोनियम पर स्वयं मोहन सागर और तबले पर प्रसून भार्गव ने कमाल की जुगलबंदी का प्रदर्शन किया।
प्रकाश परिकल्पना और संचालन गुंजन सिंह ने किया था। यूं कहां जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी की रंग उत्सव 2023 का आगाज मधुशाला की प्रस्तुति के साथ बहुत ही शानदार तरीके से हुआ है तो समापन भी शानदार ही होगा। दूसरी प्रस्तुति के तौर पर आकाशगंगा रंग चौपाल बरौनी की प्रस्तुति ऋषिकेश सुलभ की रचना ''अमली'' का मंचन राष्ट्रीय विद्यालय के स्नातक गणेश गौरव के निर्देशन में हुआ।
अपने यहां कहा जाता है ''यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता'' जहां नारियों का सम्मान होता है, वही देवताओं का निवास होता है। लेकिन आज के हालात और हमारी समाज में महिलाओं की स्थिति को रेखांकित करता यह नाटक पलायन की पीड़ा, समाज की सामंती प्रवृत्ति और महिलाओं पर होने वाले अत्याचार और अनाचार की वास्तविक तस्वीर प्रस्तुत करता है। कहानी के केंद्र में नई-नई ब्याह कर आई हुई रामेश्वर की पत्नी अमली है।
उसका पति गांव के सामंतों की चाकरी करता हुआ जब परेशान हो जाता है तो कमाने के लिए परदेश चला जाता है। एक लंबे अरसे तक जब उसकी कोई भी खोज खबर नहीं आती है और ना ही अपने परिवार को वह पैसे भेजता है तो परेशान हालत में अमली अपनी बीमार सास के इलाज के लिए पैसे मांगने गांव के समांत के यहां जाती है। इस मदद के बदले गांव का सामंत उसकी अस्मत लूट लेता है। सामंत से तो कोई सवाल नहीं करता उल्टे पूरे गांव में अमली की बदनामी होती है।
गांव के दूसरे बड़े आदमी अबरार खान को इन बातों की जानकारी होती है तो वह अमली की मदद करने के बजाय उसकी जमीन को हथियाना के लिए तरह-तरह की चालें चलता है। अंत में दो समुदायों के बीच का यह झगड़ा अमली को गांव से निकालने के फैसले पर समाप्त होता है। अमली बनी खुशबू, सास और बुढ़िया ईशा, रामेशर बने राजू, बटोही बलिराम बिहारी, सामंत महादेव राय बने रोहित वर्मा एवं मुस्लिम सामंत अबरार खान बने मनीष कुमार, आदि ने बेहतरीन अभिनय किया।
हिन्दुस्थान समाचार/सुरेन्द्र/चंदा