फूलन और ठकुराइन हत्याकांड पर आधारित ''अगरबत्ती'' के साथ राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव का समापन

 












बेगूसराय, 22 दिसम्बर (हि.स.)। दिनकर भवन में आयोजित नौंवे आशीर्वाद राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव का समापन ''अगरबत्ती'' नाटक के प्रदर्शन के साथ हो गया। शुभारंभ देश के चर्चित नाट्य निर्देशक भानु भारती, संस्कार भारती के क्षेत्र प्रमुख संजय कुमार चौधरी, मेयर पिंकी देवी, उप मेयर अनिता राय, पूर्व मेयर संजय कुमार, शिक्षक नेता डॉ. सुरेश प्रसाद राय, रंगमंडल के अध्यक्ष ललन प्रसाद सिंह एवं सचिव अमित रौशन ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया।

इस अवसर पर देश के चर्चित नाट्य निर्देशक भानु भारती को रंगमंडल की ओर से मेयर पिंकी देवी एवं उप मेयर अनिता राय ने रंगकर्मी रामविनय रंग सम्मान-2023 से सम्मानित किया। रंग सम्मान के रूप में प्रतिक चिन्ह, चादर और 28 हजार रूपये सप्रेम भेंट किया गया है। मेयर पिंकी देवी ने कहा कि यह समापन नहीं आगे आने वाले महोत्सव का आगाज है। कलाकारों का जीवन काफी संघर्ष भरा हुआ होता है। उप मेयर अनिता राय ने कहा की आप नाटक दिखाते हैं, समाज की समस्याओं से अवगत कराते हैं।

संस्कार भारती के क्षेत्र प्रमुख संजय कुमार चौधरी ने कहा कि कला के बिना जीवन अधूरा है। कला, संस्कृति और साहित्य से ही समाज विकास करता है, उन्होंने बेगूसराय के रंग दर्शकों की प्रशंसा की। रंगकर्मी रामविनय रंग सम्मान से सम्मानित भानु भारती ने दिनकर की धरती को नमन करते हुए कहा की उनके जीवन में दिनकर रूपी सूर्य की रोशनी मिला है। जिन्होंने उनके जीवन को गढ़ा है, हिंदी साहित्य में दिनकर से बड़ा कोई ओजस्वी कवि नहीं हुआ है।

इसके बाद समागम रंगमंडल जबलपुर की प्रस्तुति आशीष पाठक लिखित और स्वाति दुबे द्वारा निर्देशित नाटक अगरबत्ती का बेहतरीन प्रदर्शन किया गया। नाटक अगरबत्ती 1981 में हुए फूलन देवी एवं बेहमई हत्याकांड पर आधारित था। यह हत्याकांड दुनिया के सामने एक सवाल के रूप में आया था, जिसमें जातिवाद, सामंतवाद, पितृसता का फावड़ा फूट गया था। फूलन आत्मसमर्पण कर जेल गई। नाटक ने दिखाया राजनीति ने इस घटना और जटिया समीकरण को अपने पक्ष में साधना शुरू किया।

तीव्र भावुकता भारतीय राजनीति का एक उपकरण है जो सत्ता के शीर्ष पर पल में पहुंचा सकता है, उसी को साधने का दोबारा प्रयास अगरबत्ती है। सवाल अनुतरित इसलिए है कि सांसद रहते हुए दिल्ली में फूलन देवी की हत्या, जातीय उन्माद फैला कर सत्ता प्राप्त करने की कोशिश थी। बेहमई के ठाकुरों की हत्याकांड के बाद उनकी विधवाओं के लिए सरकार ने अगरबत्ती बनाने की कारखाना खोली। जिससे विधवाओं के पुनर्वास का अवसर मिले। लालाराम ठकुराइन अपने पति के लिए न्याय की मांग करती है।

वह फूलन से मुकाबला कर समुदाय को संगठित करती है, मासूम लोगों की हत्या पर सवाल उठाती है। लेकिन ठकुराइन को अहसास होता है कि अपराध का किसी भी प्रकार से सहारा लेना भी अपराध है। आठ महिलाओं के साथ अपने पति की राख को अगरबत्ती बनाने के सामग्री में मिला दिया। प्राकृतिक न्याय की तरह बेहमई की राख अगरबत्ती में मिल गई, बची रह गई सिर्फ नौ महिलाएं। जाति वर्ग और लिंग से मुक्त, बची रह गई जलती हुई महिलाएं।

अगरबत्ती ठकुराइन की भूमिका स्वाति दुबे, सुमन की भूमिका मानसी रावत, पार्वती की भूमिका साक्षी गुप्ता, कौशल्या की भूमिका ज्योत्सना कटारिया, लज्जो की भूमिका शिवांजली, दमयंती की भूमिका हर्षिता गुप्ता, कल्ली की भूमिका शिवकर सपरे के साथ अन्य पात्रों ने बेहतरीन अभिनय किया। प्रकाश संचालन आशीष पाठक, वाइस ओवर गोविंद नामदेव और साउंड अनमोल किरार का था। महोत्सव के समापन अमित रौशन ने सभी का आभार जताया।

हिन्दुस्थान समाचार/सुरेन्द्र/चंदा